Thursday, September 12, 2013

जो भिन्न दोनों को करे,तत्समय यह निर्बंध हो

जो भिन्न दोनों को करे,तत्समय यह निर्बंध हो 
(कविता)
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

है आत्मा करता अरे ,  क्रोधादि आश्रव कर्म हें 
रे बंध का है मूल ये , मिथ्यात्व और अधर्म है 
इस तरह कर्ता कर्म के , अज्ञान से नित बंध हो 
जो भिन्न दोनों को करे,तत्समय यह निर्बंध हो 

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