हमारी अंतर्बाह्य दशा एक दूसरे से छुपी नहीं है तब हम व्यर्थ ही क्यों अपनी शक्ति और श्रम व्यर्थ के दिखावे में नष्ट करते हें और क्यों नहीं स्वाभाविक रूप को स्वीकार करते हें ?----------
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