एक दिन हमारा यह जीवन यूं ही समाप्त हो जाता है , उपलाब्धिविहीन !
क्यों ? कैसे ?
तब हम क्या करें इसे बचाने के लिए ?
Parmatm Prakash Bharill: अब दिन की आवश्यकताएं पूरी करने में ही दिन पूरा हो ...: एक दिन हमारा यह जीवन यूं ही समाप्त हो जाता है , उपलाब्धिविहीन ! क्यों ? कैसे ? तब हम क्या करें इसे बचाने के लिए ? १० घंटे की लम्ब...
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