Saturday, August 18, 2012

Parmatm Prakash Bharill: अब दिन की आवश्यकताएं पूरी करने में ही दिन पूरा हो ...


एक दिन हमारा यह जीवन यूं ही समाप्त हो जाता है , उपलाब्धिविहीन ! 
क्यों ? कैसे ?
तब हम क्या करें इसे बचाने के लिए ?


Parmatm Prakash Bharill: अब दिन की आवश्यकताएं पूरी करने में ही दिन पूरा हो ...: एक दिन हमारा यह जीवन यूं ही समाप्त हो जाता है , उपलाब्धिविहीन !  क्यों ? कैसे ? तब हम क्या करें इसे बचाने के लिए ? १० घंटे की लम्ब...

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