Tuesday, July 10, 2012

जो तेरे पास उपलब्ध है वह उस वस्तु के प्रति तेरी ग्राद्ध्ता की सही तीव्रता को प्रदर्शित नहीं करता है . किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति तेरी ग्रद्धता की तीव्रता तब पता लगती है जब वह तेरे पास न हो , तब तू उसके बिना कितना तड़पता है यह बतलाता है क़ि उसके प्रति तेरा राग कितना तीव्र है .

जो तेरे पास उपलब्ध है वह उस वस्तु के प्रति तेरी ग्राद्ध्ता की सही तीव्रता को प्रदर्शित नहीं करता है .
किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति तेरी ग्रद्धता की तीव्रता तब पता लगती है जब वह तेरे पास न हो , तब तू उसके बिना कितना तड़पता है यह बतलाता है क़ि उसके प्रति तेरा राग कितना तीव्र है .
बंध किसी वस्तु के भोगोपभोग से नहीं होता है , बंध उसके प्रति राग से होता है , जितनी अधिक राग की तीव्रता उतना अधिक बंध .
भोग हो या न हो , राग के कारण निरंतर बंध होता ही रहता है .
यदि राग न हो तो भोग होने पर भी बंध नहीं होता है .
कहा भी है न क़ि- " ज्ञानी के भोग निर्जरा हेतु हें "
यहाँ ज्ञानी से तात्पर्य है - जिनके अनंतानुबंधी , प्रत्याख्यान या अप्रत्याख्यान कषाय के अभाव रूप आंशिक वीतरागता प्रकट हुई हो .
इसे ही कहते हें " ज्ञान मात्र से बंध का निरोध होता है "
यदि तुझे भी बंध का निरोध करना है या अल्प बंध हो ऐसा तू चाहता है तो भूमिकानुसार भोगोपभोग होने पर भी उनमें आशक्त मत हो , उनमें इष्ट अनिष्ट की कल्पना छोड़ दे , तेरा कल्याण होगा .

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