Friday, September 25, 2015

उत्तम आकिंचन्य धर्म

धर्म के दशलक्षणों में नवमां-

उत्तम आकिंचन्य धर्म -
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

इसी आलेख से -

"परपदार्थों और उनके लक्ष्य से उत्पन्न होने वाले विकारों को पर जानकर उनसे विमुख होना ही उत्तमआकिंचन धर्म है.
पर पदार्थों के ग्रहण का नाम (उनके प्रति ममता व उनके ग्रहण का भाव) परिग्रह है और परिग्रह का त्याग करना आकिंचनधर्म है."






                               उत्तम आकिंचन्य धर्म                   


सर्व पर से विमुख होना, उत्तम अकिंचन  धर्म है 
परिग्रह का त्याग करना, उत्तम अकिंचन धर्म है 
सीमितरहे निजआत्म में,परका ग्रहण करता नहीं
परको न अपना मानना, उत्तम अकिंचन धर्म है 


आजतक यह आत्मा, बोझिल रहा परकी चाह से 
भटका किया अटका रहा, पर की सदा परवाह से 
वृत्तियाँ  परद्रव्य लक्षित, अंतर्परिग्रह   जानकार
द्रष्टि परसे हटा निजमें,थितरहे अकिंचनधर्मधर   


पदों का अर्थ -

परपदार्थों को अपना न मानना और पर स्वीकार कर, उनसे विमुख होकर, परिग्रह का त्याग करके निज में स्थित होना ही अकिंचन धर्म है.
आज तक यह आत्मा परपदार्थों की चाह में ही व्यस्त रहता आया है. परद्रव्य के लक्ष्य से उत्पन्न होने वाले विकारों को अन्तरंग परिग्रह जानकर पर से द्रष्टि हटाकर निज में स्थापित करना ही अकिंचन धर्म है.


परपदार्थों और उनके लक्ष्य से उत्पन्न होने वाले विकारों को पर जानकर उनसे विमुख होना ही उत्तमआकिंचन धर्म है.
पर पदार्थों के ग्रहण का नाम (उनके प्रति ममता व उनके ग्रहण का भाव) परिग्रह है और परिग्रह का त्याग करना आकिंचनधर्म है.

आत्मा में उत्पन्न होने वाले मोह, राग और द्वेष आदि भाव अन्तरंग परिग्रह हें और धन-संपत्ति आदि बाह्य सामग्री बाह्य परिग्रह हें.
परिग्रह के 24 भेद हें -

 14 प्रकार के अन्तरंग परिग्रह और 10 प्रकार के बहिरंग परिग्रह.

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