jaipur, monday, 8th naov.2015, 3.07 am
विहार चुनाव परिणामों और उनकी भविष्यवाणियों के सन्दर्भ में एक विवेचन
बात विहार के चुनाबों की चल रही है.
विहार चुनाव परिणामों और उनकी भविष्यवाणियों के सन्दर्भ में एक विवेचन
हम महामूर्ख हें या
महाधूर्त? हम
महाअज्ञानी हें या महामक्कार? हम महाभोले हें या महाधोखेबाज? हम महाजड़
हें या महाझूंठे?
- परमात्म
प्रकाश भारिल्ल
बात विहार के चुनाबों की चल रही है.
दो महिने से ये सभी महानलोग बस एकही राग अलापते रहे कि –
“टक्कर कांटे की है, मुकावला बराबरी का है, कह नहीं सकते कि कौन जीतेगा- कौन हारेगा, यह भी हो सकता है वह भी हो सकता है.”
अरे! अब यहतो कौन नहीं जानता है कि या तो यह होगा या वह होगा. मात्र इसके लिए आप जैसे इतने बुद्धिमान लोगों को कष्ट करने की क्या जरूरत थी?
आखिर हुआ क्या?
"3:1" !!!
एक तरफ 3 तो दूसरी तरफ 1?
अरे! जिन्हें 3 और 1 का फर्क समझ नहीं आता वे देश के मार्गदर्शक बने बैठे हें! वे देश को दिशा देने का दम्भ पालते हें!
क्या अब भी कोई ग्लानी है इनके ह्रदय में?
क्या अबभी इनका दम्भ चूर्ण हुआ है?
क्या देश का भाग्य अबभी इन्हीं लोगों के मजबूत हाथों में रहेगा?
भला करे भगवान्!
आज निर्णय तो करना होगा, आजसे
अच्छा अवसर फिर कब आयेगा?
एक बात तो तय है कि हम हें तो महान, हम कोई
साधारण लोग तो हें नहीं. अब देखना यह है कि हम महामूर्ख हें या महाधूर्त? हम
महाअज्ञानी हें या महामक्कार? हम महाभोले हें या महाधोखेबाज? हम महाजड़
हें या महाझूंठे?
हम स्वयं धोखा खागए या दुनिया को धोखा देते रहे?
आज तय तो करना होगा न!
आज मैं इस इस सार्वजनिक
प्लेटफोर्म पर खुलेआम इतनी कठोर बात इसलिए कर रहा हूँ कि जो कुछ हुआ है खुलेआम हुआ
है, छुप- छुपाकर
नहीं. सारे देश के साथ हुआ है, अकेले मेरे साथ नहीं. महान लोगों द्वारा किया गया
है, किसी
साधारण व्यक्ति द्वारा नहीं.
चाहे वे महान नेता हों या महान पत्रकार, जिनके हाथों में देश को चलाने
(चराने) की बागडोर है वे नेता और जिनके हाथ में देश को जगाने (जागरूक रखने
का भ्रम पैदा करने की) जिम्मेबारी है वे पत्रकार.
क्या यही लोग हमारे भाग्यविधाता बने रहेंगे?
क्या यही है हमारी नियति?
क्या हमें अबभी किसी से कोई शिकवा नहीं?
क्या हमें अबभी किसी से कोई शिकवा नहीं?
हम जैसा "वेचारा" और कौन होगा?
(सामान्यत: मैं राजनैतिक टिप्पणियाँ करना पसंद नहीं करता हूँ)
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