टोडरमल स्मारक भवन कास्वर्णजयन्ती गीत
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
लो स्वर्णजयन्ती बर्ष आगया ज्ञानतीर्थ जिनधाम का
जिसने जग में अलख जगाया वीतरागविज्ञान का
वास यहां भावी सिद्धों का ध्यान हो आतमराम का
वीरकुन्द वा टोडरमल गुरुदेव कहान महान का
वीतरागता के पूजक हम हें वीतराग के अनुगामी
दिव्यध्वनि के अनुरागी जो तीन लोक में कल्याणी
वीतराग जिनदेव गुरु का मार्ग कभी न भुलायेंगे
वीतराग के शिवा कहीं हम मस्तक नहीं झुकाएँगे
मशाल ये हमने थमी है गुरुदेव से आतम ज्ञान की
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
लो स्वर्णजयन्ती बर्ष आगया ज्ञानतीर्थ जिनधाम का
जिसने जग में अलख जगाया वीतरागविज्ञान का
वास यहां भावी सिद्धों का ध्यान हो आतमराम का
वीरकुन्द वा टोडरमल गुरुदेव कहान महान का
वीतरागता के पूजक हम हें वीतराग के अनुगामी
दिव्यध्वनि के अनुरागी जो तीन लोक में कल्याणी
वीतराग जिनदेव गुरु का मार्ग कभी न भुलायेंगे
वीतराग के शिवा कहीं हम मस्तक नहीं झुकाएँगे
मशाल ये हमने थमी है गुरुदेव से आतम ज्ञान की
कोई किसीका नहींहै कर्ता शक्तिअमित गुणखानकी
कण स्वतंत्र क्रमबद्ध परिणमन येथी सीख कहानकी
यही ज्योतिअब सदा जलेगी हमें शपथ भगवान की
एक ध्येय है एक लक्ष्य बस ज्ञानके दीप जलाएंगे
भगवन बनने का मारग है ये सबको यह बतलायेंगे
बिषयभोग में नहीं रमेंगे नहीं किसीको उलझाएंगे
हमतो नित बस देवगुरू के आतम के गुण गाएंगे
एक यही संकल्प हमारा स्वाध्याय वा तत्वप्रचार
पहुंचादेंगे जिनवाणीको अखिलविश्व के हर घरद्धार
जिनमंदिर हों गाँव-गाँव में गलीमुहल्ले पठ्शाला
हर व्यक्तिको सहज सुलभ हो यह शिक्षा देनेवाला
नहीं किसीको लक्ष्यकरेंगे या नहीं किसीसे उलझेंगे
जो भी हमसे सहमत होगा उसको हम अपनालेंगे
वैरविरोध किसीसे करना यह मुमुक्षु का काम नहीं
वीतराग के हमहैं उपासक राग-द्वेष का नाम नहीं
सर्वसमाजमें रहे एकता सब स्वतंत्र निजचिंतनमें
राग द्धेष ना वैमनस्य हो यहां किसी के भी मन में
यह वीतरागका मारग तो भई सारे जगसे न्यारा है
यह मुक्ति का मार्ग हमें तो प्राणों से भी प्यारा है
नहीं रुकेंगे नहीं झुकेंगे ये ध्वजा नहीं गिरने देंगे
शिद्धशिला की ओर बढ़ेंगे व साथ सभी को ले लेंगे
नहीं पड़ाव यह नितप्रवाह है कभी नहीं रुकपायेगा
यही ज्योतिअब सदा जलेगी हमें शपथ भगवान की
एक ध्येय है एक लक्ष्य बस ज्ञानके दीप जलाएंगे
भगवन बनने का मारग है ये सबको यह बतलायेंगे
बिषयभोग में नहीं रमेंगे नहीं किसीको उलझाएंगे
हमतो नित बस देवगुरू के आतम के गुण गाएंगे
एक यही संकल्प हमारा स्वाध्याय वा तत्वप्रचार
पहुंचादेंगे जिनवाणीको अखिलविश्व के हर घरद्धार
जिनमंदिर हों गाँव-गाँव में गलीमुहल्ले पठ्शाला
हर व्यक्तिको सहज सुलभ हो यह शिक्षा देनेवाला
नहीं किसीको लक्ष्यकरेंगे या नहीं किसीसे उलझेंगे
जो भी हमसे सहमत होगा उसको हम अपनालेंगे
वैरविरोध किसीसे करना यह मुमुक्षु का काम नहीं
वीतराग के हमहैं उपासक राग-द्वेष का नाम नहीं
सर्वसमाजमें रहे एकता सब स्वतंत्र निजचिंतनमें
राग द्धेष ना वैमनस्य हो यहां किसी के भी मन में
यह वीतरागका मारग तो भई सारे जगसे न्यारा है
यह मुक्ति का मार्ग हमें तो प्राणों से भी प्यारा है
नहीं रुकेंगे नहीं झुकेंगे ये ध्वजा नहीं गिरने देंगे
शिद्धशिला की ओर बढ़ेंगे व साथ सभी को ले लेंगे
नहीं पड़ाव यह नितप्रवाह है कभी नहीं रुकपायेगा
स्वर्णजयंती आज मनाते यह अनन्ततक जाएगा
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