क्या हम चोर के बह्कावे में आकर पुलिस को ठुकरादें , तब हमें चोरों से कौन बचाएगा ?
जब चोर हमें लूट रहा हो और बचाने को पुलिस वाला आजाये तब क्या हम तलासने को बैठेंगे क़ि कहीं यह पुलिस वाला रिश्वत तो नहीं खाता है या शराब तो नहीं पीता है या किस जाति का है या अपनी पत्नी से कैसा व्यवहार करता है ?
यदि टीम अन्ना थककर ठहर गई या टूट गई तो ?
क्या होगा देश का , हमारा और भ्रष्टाचार का ?
टीम अन्ना कैसी है , उसके सदस्य कैसे हें इससे ज्यादा महत्वपूर्ण है यह सोचना क़ि यदि टीम अन्ना न रही तब क्या होगा ?
गुलामी के खिलाफ लड़ाई गांधी के नेतृत्व में लड़ी गई और आजादी तो मिल गई ,पर आज तक भ्रष्टाचार के खिलाफ कौन इतने प्रभावशाली ढंग से खडा हुआ है ?
क्या हमें भ्रष्टाचार से मुक्ति की जरूरत नहीं है ? यदि है तो हमारे पास इस काम के लिए दूसरा विकल्प क्या है ?
तब हम कैसे टीम अन्ना को छोड़ सकते हें ? वे जो हें जैसे हें .
क्या हम चोर के वह्कावे में आकर पुलिस को ठुकरादें , तब हमें चोरों से कौन बचाएगा ?
जब चोर हमें लूट रहा हो और बचाने को पुलिस बाला आजाये तब क्या हम तलासने को बैठेंगे क़ि कहीं यह पुलिस वाला रिश्वत तो नहीं खाता है या शराब तो नहीं पीता है या किस जाति का है या अपनी पत्नी से कैसा व्यवहार करता है ?
यदि पुलिस भी गलत है तो चोर सही कैसे हो जाते हें ?
यदि दो में से एक चुनना ही मजबूरी है तो वेहतर विकल्प कौनसा है ?
यदि टीम अन्ना का यह प्रयोग असफल हो गया तो क्या होगा ? फिर कौन , कब और कैसे यह साहस कर पायेगा ?
तब क्या हम इसी गंदगी के बीच रहने के लिए और शोषण सहने के लिए अभिशप्त नहीं रह जायेंगे ?
और फिर हमें करना ही क्या है ? बदले में हमसे कौन क्या मांग रहा है ?
मात्र मौन समर्थन ही तो ?
हम चुप तो रह सकते हें न ?
किसी और के लिए नहीं , अपने लिए अपने हित के लिए .
जब से टीम अन्ना ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक प्रभावशाली और निर्णायक मुहिम छेड़ी है ,तबसे उन सभी के चरित्र हनन के अनेकों प्रयास (अभियान) भी प्रारम्भ हो गए हें .
हमें (भारत की जनता को) यह समझ लेना चाहिए क़ि ये अभियान किसी अन्ना या केजरीवाल या किरण वेदी के खिलाफ नहीं वल्कि हमारे हितों के खिलाफ हें .
" देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाना यह देश के हित में है , देश की जनता के हित में है , हमारे हित में है "
यदि आप उक्त कथन से सहमत हें तो इसके मायने विल्कुल साफ़ हें क़ि इस तरह के अभियान को कमजोर करने वाला कोई भी प्रयास हमारे हित के विरुद्ध है .
ऐसी किसी बुराई क़ि विरुद्ध कोई प्रभावशाली अभियान प्रारम्भ करना और उस पर कायम रहना , टिक पाना कोई साधारण काम नहीं है , इसके लिए दृढ संकल्प , असीम साहस , दूरदर्शिता ,धैर्य और निडरता की आवश्यकता है और यह सब कुछ रोज - रोज नहीं हो सकता है नहीं हुआ करता है , यह सदियों में एकाध ब़ार हो पाता है .
इस तरह के अभियानों से जिन निहित स्वार्थी तत्वों के हितों को चोट पहुँचती है स्वाभाविक ही है क़ि वे इन प्रयासों को आघात पहुंचाने के लिए चौतरफा प्रयास प्रारम्भ कर दें .
इन आन्दोलन कारियों का चरित्र हनन उनके इन्हीं प्रयासों की एक कड़ी है .
देश के एक सजग नागरिक होने के नाते हमारा कर्तव्य है क़ि हम किसी to the point thinking करें और जो कुछ चल रहा है उसका विश्लेषण करें .
निम्नलिखित कुछ विन्दु (points) विचारणीय हें -
- अन्ना और उनकी टीम कोई सन्यासी या भगवान नहीं हें क़ि हम उनसे अत्यंत आदर्श व्यवहार की उम्मीदें बांधलें , कोई छोटी बड़ी त्रुटी उनके व्हाव्हार में भी हो ही सकती है .
और फिर किसी भी साधु - संत का भी अतीत तो दूषित हो ही s
कब हम किसी सर्जन से अपने ह्रदय का आपरेशन करवाना चाहते हें तो मात्र इस बारे में सुनिश्चित करना चाहते हें क़ि वह एक अच्छा , दक्ष शल्य चिकित्सक है . हमें इस बात से कोई सारोकार नहीं होता है क़ि कहीं वह जुआ तो नहीं खेलता है या उसका किसी के साथ कोई चक्कर तो नहीं चल रहा है . तब यहाँ क्यों हम इस तरह की पंचायतों में पड़ें , न तो वे हमसे कोई चरित्र प्रमाण पत्र मांग रहे हें और न ही यह हमारी जिम्मेबारी है .
- टीम अन्ना के कुछ सदस्यों के विरुद्ध जो आरोप सामने आए हें उनसे तो स्वत: ही उन्हें चरित्र प्रमाणपत्र मिल रहा है ,क्योंकि -
सर्व साधन सम्पन्न सरकार , अपनी सम्पूर्ण शक्ति झोंक कर भी ऐसा कोई गंभीर आरोप नहीं लगा सकी है जो क़ि इन सदस्यों को पतित साबित करता हो , इससे तो यह़ी साबित होता है इन लोगों के अपने जीवन में ऐसा कोई भी गंभीर अपराध नहीं किया है जो समाज या सरकार की द्रष्टि में अपराध या हें कार्य हो , यह तो इस सब के लिए चरित्र प्रमाण पत्र के समान है .
- जिन लोगों ने एक सामान्य जन और सर्व साधारण नागरिक के रूप में इस काजल की कोठरी में अपना सारा जीवन ही व्यतीत कर लिया हो उनके जीवन में सयोग वश या परिस्थिति के अनुरूप
(बिसम परिस्थिति में) यदि कोई हो भी गई हो तो यह कोई गंभीर बात नहीं हुआ करती क्योंकि वह उनके सामान्य चरित्र का अंग नहीं है .
- सभी लोगों में समय के साथ परिवर्तन आता है , यदि किसी व्यक्ति से कभी कोई अपराध बन भी पडा हो याजो अपराधी वृत्ति का ही रहा हो पर आज वह सम्पूर्णत: बदल भी सकता है , ऐसे कई उदाहरण हें ( वाल्मीकि जो पहिले लुटेरे थे फिर संत हो गए) ऐसे में हम उनके आज के व्यक्तित्व का विचार करें या पूर्व का .
- यदि किसी बड़े अभियान में कुछ ऐसे लोग भी जुड़ जाते हें ( चाहे किसी भी इरादे से सही ) जो गलत भी हों तो भी वह सम्पूर्ण अभियान गलत नहीं हो जाता है , हमें उस अभियान के गुण - दोष के बारे में अलग से विचार करना चाहिए और किसी व्यक्ति विशेष के बारे में अलग से , इस तरह के मामले में दो चीजों को जोड़कर देखना उचित नहीं है .
आन्दोलनकारियों के पास न तो कोई संविधान है और ना ही उसे लागू करबाने के लिए कोई सेना , पुलिस , अदालतें और प्रसाशनिक तंत्र , वे तो सड़क के साधारण लोग हें और जनता पर उनका मात्र भावात्मक नियंत्रण है ,वल पूर्वक नहीं , ऐसे में उसमें असामाजिक तत्वों और निहित स्वार्थी लोगों की घुसपैठ तो हो ही सकती है .
- जिनके दामन दागी हें और वे स्वयं सुधरना भी नहीं चाहते हें तब वे औरों को भी कलंकित बतलाकर अपनी ही जमात का अंग बतलाना चाहते हें ( भला तेरी कमीज मेरा कमीज से उजली कैसे हो सकती है )(और भला हम कलंकित साबित हो जाने से आप कैसे पवित्र हो जाते हें ?) वे औरों की उजली कमीज पर भी सूक्ष्मदर्शी से दाग ढूँढने का प्रयास कर रहे हें (स्वागत है , क्योंकि कबीरदास कह गए हें- "निंदक नियरे राखिये----------"), बे कहना चाहते हें क़ि हम सब चोर-चोर मौसेरे भाई हें .
ठीक है , हम कर ही क्या सकते हें ? यदि हम कर्मफूटों के भाग्य में चोर ही बदे हें तो उन्हीं से काम चलाना पडेगा पर तब भी बड़े और छोटे में से किसे चुनना है यह भी तो विचारणीय हो सकता है , और फिर ये तो चुनाव में खड़े ही कहाँ हें , ये तो कह रहे हें क़ि क़ानून बनाइए ताकि आप स्वयं ही सुधर सकें ,हम तो सुधरे हुए आप से ही काम चलाने को तैयार हें .
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल
6 TH NOV . 2011 , 10.30 AM
very well said.. i myself cant understand why people dont understand ..why we care who or wht team anna ppl are like what we should be concentrating is .. what are they askign for what are they demanding for.. is that right or wrong.. team anna ppl are very well qualified well settled people..they ae fighting for common people because they want every one equal so that we all can enjoy the same luxury of life which at the moment is available to only riches and rest of us are only struggling to survive
ReplyDeleteबहुत सुंदर वर्णन
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