Tuesday, July 23, 2013

क्या श्रृंगार का नाम भगवान् है ? भगवान् को श्रृंगार से क्या काम ? क्या भगवान को स्वयं भी अपना यह रूप पसंद है ? तू उस रूप पर मोहित होकर अपने आप को बड़ा भगत मानता है , क्या यह तेरा भ्रम नहीं है ?

हम अपने आप को धोखे में रखने में माहिर हें . 
हम भौतिक वस्तुओं पर रींझते हें और अपने आप को बड़ा भक्त मानते हें 

हम दर्शन करने जाते हें तो भगवान के श्रृंगार पर मोहित हो जाते हें . 
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

मैं पूंछता हूं कि आखिर श्रृंगार किसकी विशेषता है ?
भगवान की या श्रृंगार करने वाले पुजारी की ?
क्या श्रृंगार का नाम भगवान् है ?
भगवान् को श्रृंगार से क्या काम ?
क्या भगवान को स्वयं भी अपना यह रूप पसंद है ?
तू उस रूप पर मोहित होकर अपने आप को बड़ा भगत मानता है , क्या यह तेरा भ्रम नहीं है ?

हम मंदिर की सुन्दरता पर रींझते हें , वहां के वातावरण में रमते हें . 
क्या अच्छा लगता है हमें मंदिर में ?
क्या वहां की ध्वनि ? 
पूजा-पाठ और वाद्य और घंटों की आबाज ?
क्या वहां की गंध ? 
धूप , चन्दन और अगरवत्ती की खुशबू ?
क्या वहां के लोग ?
तरह-तरह से सज्जित होकर आये हुए लोग ?
वहां के बाग़ बगीचे ?
मंदिर का वास्तु ?

क्या अच्छा लगता है हमें ?
किस पर रींझते हें हम ?

क्या इन सब का नाम भगवान् की भक्ति है ?
क्या ये सब भगवान के गुण हें , जिन पर तू रींझा है ?

हम अपने आप को धोखे में रखने में माहिर हें . 
हम भौतिक वस्तुओं पर रींझते हें और अपने आप को बड़ा भक्त मानते हें 
हम पिकनिक पर मंदिर जाते हें फिर चाहते हें कि इस पर प्रसन्न होकर भगवान् दुनिया की सारी नियामतें हम पर लुटादें . 
क्या यह संभव है ?

1 comment:

  1. मंदिर सब पिकनिक स्थल बन गये है...................भगवन कि मुर्तिया तो सजावट कि वस्तुए है...........हकीकत तो ये है. आप माने या ना माने ...............आपकी मर्जी............

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