दौड़ में तो सभी शामिल हें , सभी दौड़ रहे हें तो क्या में भी इस दौड़ में शामिल हो जाऊं ?
प्रश्न तो यह है कि आखिर यह ढूढ ख़त्म कब होती है ? कभी होती भी है या नहीं ?
दौड़ के अंत में कौन कहाँ पहुंचता है ? कहीं पहुंचता भी है या नहीं ?
नहीं ! कहीं नहीं ?
यह दुनिया सिर्फ दौड़ है , सिर्फ दौड़ की ही बनी हुई है ये दुनिया . दौड़ के अलावा कुछ भी नहीं है यहाँ .
यहाँ सिर्फ दौड़ है , दौड़ का कोई अंत नहीं है , अंत में कोई मंजिल नहीं है .
जैसे प्याज सिर्फ छिलकों से बनी है , छिलकों के अतिरिक्त प्याज और कुछ भी नहीं है .
ऐसा नहीं है कि कुछ छिलके उतार फेंको और अन्दर से प्याज निकलेगा . यदि छिलके उतारते जाओगे तो कुछ नहीं बचेगा , सब कुछ ख़त्म हो जाएगा .
बस ऐसे ही है ये संसार की दौड़ ? यदि दौड़ते ही रहे तो यूं ही दौड़ते ही दौड़ते जीवन ख़त्म हो जाएगा .
यदि जीवन में कुछ पाना है तो दौड़ना बंद करो , थम जाओ , शान्ति से बैठो और अपने लक्ष्यों का निर्धार करो .
लक्ष्य के निर्धारण के बाद उसे पाने की राह पर चल पड़ो .
औरों को देख कर दौड़ मत पड़ो , वे जो बिना सोचे -समझे दौड़ रहे हें , वे अविवेकी हें , उनका अनुशरण करके आप क्या पाना चाहते हो , क्या पा लोगे ?
जो आज तक दौड़े हें उन्होंने क्या पा लिया है ?
फिर तू क्यों नहीं शांति से बैठकर कुछ विचार करता है ?
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