क्या तेरा यह व्यवहार अपने आत्मा के प्रति तेरी घोर उपेक्षा नहीं है , भयंकर अपराध नहीं है ?
हमने अपने पूर्वजों की सब बातें बदल डालीं .
घर, मकान, गली ,मोहल्ला ,नगर,गाँव ओर देश .
भाषा,वाणी, विचार एवं आचरण .
खान-पान , रहन-सहन,पहिनावा
शिक्षा-दीक्षा,धंधा-व्यवसाय .
जीवन मूल्य , संस्कार
द्रष्टिकोण , रवैया .
क्या कुछ नहीं बदला ?
और यह सब विवेक के नाम पर.
प्रगतिशीलता के नाम पर .
विकास के नाम पर .
आधुनिकता के नाम पर .
पर जब अपनी बात आती है , आत्मा की बात आती है ,परमात्मा की बात आती है ,धरम की बात आती है ,
तो हम वहीं पहुँच जाते हें
बाप -दादा के नाम पर
परम्परा के नाम पर .
जब यहाँ स्वविवेक की बात आती है तो हम कहते हें क़ि हम क्यों माथा मारें ?
हमारे बाप-दादा कोई मूर्ख थोड़े ही थे ?
जो सब कुछ बदल डाला है वह भी तो उन्ही बाप-दादाओं की विरासत थी , तब वहां क्यों नहीं सोचा क़ि क्या वे मूर्ख थे ? वहन तो बदल डाला सब कुछ .
इसका तो एक ही मतलब है क़ि तुझे अपनी पडी ही नहीं है, परवाह ही नहीं है
स्वयं अपनी , आत्मा की , परमात्मा की .
क्या तेरा यह व्यवहार अपने आत्मा के प्रति तेरी घोर उपेक्षा नहीं है , भयंकर अपराध नहीं है ?
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल
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