कोई चमत्कार या जादू नहीं-
हम सभी लोग जीवन में उंचाइयां छूने की और महान उपलब्धियां हासिल करने की ख्वाहिशें रखते हें, उसके लिए प्रयत्न भी करते हें पर हमारी उपलब्धियां बहुत कम होती हें और कदम-कदम पर अनेकों कठिनाइयों का सामना होता ही रहता है.
एक ओर हम हें जो कुछ भी नहीं कर पाए और दूसरी ओर अनेकों वे लोग हें जो आकाश में ऊँचे उड़ रहे हें, नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हें.
हमें लगता है वे कुछ अलग हें, वे हम जैसे नहीं, वे हममें से नहीं. शायद
वे चमत्कारी लोग हें या उन्हें किसी महाशक्ति का आशीर्वाद प्राप्त है या
कोई वरदान मिल गया है.
अंतत: होता यह है कि अधिकतम लोग तो यह मानकर कि “हम वे नहीं, हम उन जैसे नही. वे भिन्न हें महान हें, हम भिन्न हें सामान्यजन हें और हमें न तो उन जैसे सपने ही देखने चाहिए और न ही हमें उनकी देखादेखी करने का अधिकार है. हमें अपनी सीमाएं पहिचाननी चाहिए और अपनी सीमाओं में ही रहना चाहिए”.
इसप्रकार बस सामान्य ही नहीं अति सामान्य बने रहना ही अपनी नियति मानकर वे जीवन काटने के लिए तैयार हो जाते हें.
कुछ लोग आसानी से हथियार नहीं डालते, उन्हें लगता है कि जरूर इन्हें किसी
देवी-देवता या संत-महंत का आशीर्वाद प्राप्त है, या वे कोई जादूटोना या
तंत्रमंत्र जानते हें, इसीलिये उनके सब काम चुटकियाँ बजाते ही हो जाते
हें. यह सोचकर वे लोग हमेश बस उन चमत्कारी देवी-देवता, संत-महंत, मंदिर
या तीर्थ, जादूटोने या तंत्रमंत्र की खोज में लगे रहते हें जो उनकी नैया
पार लगादे. अंतत: ऐसे लोगों के हाथ भी कुछ नहीं लगता शिवाय इसके कि वे इन
सबके चक्कर में अपनी शक्ति, समय व श्रम और बर्बाद करते रहते हें,
फलस्वरूप वह भी गँवा बैठते हें जो उनके पास है, रूपया-पैसा, चैन-शुकून,
शक्ति-स्वास्थ्य, समय और उम्र.
एक बात और है कि ये लोग अपने अनुभवों से सीखना भी नहीं जानते हें, ये
सुधरना ही नहीं चाहते हें. लगातार असफलताओं के बाबजूद बस जुटे ही रहते
हें, लगातार, बिना थके, बिना रुके, अनवरत, अहिर्निश.
ये वे लोग हें जिनमें वे सब गुण मौजूद हें जो सफलता पाने के लिए आवश्यक
हें शिवाय दिशा के. ये असफल इसलिए हें कि इनकी दिशा गलत है. इनकी
इक्षाशक्ति, द्रढ़ता, संकल्प, प्रयत्न, श्रम और समर्पण में कोई कमी नहीं,
जो सफलता के लिए आवश्यक हें.
मैंने महान लोगों के बीच ही जन्म लिया, पला-बढ़ा. अनेक क्षेत्रों के
अनेकों महान लोगों के निकट संपर्क में आया, उनके जीवन और उसमें घटित होने
वाले छोटे-बड़े सभी प्रकार के घटनाक्रमों का साक्षी रहा, मात्र साक्षी भाव
से ही नहीं वरन भोक्ता भाव से भी और मुझे ऐसे ही अनेकों लोगों की
सद्भावना, शुभेक्षा, आशीर्वाद और सक्रिय सहयोग भी प्राप्त है, वैचारिक भी
और भौतिक भी. उनका अंतर-बाहर सबकुछ मेरे समक्ष प्रकट है.
मैंने पाया कि उनमें किसी भी जनसामान्य की अपेक्षा कुछ भी तो विशेष नहीं,
वही कमजोर काया, वही सीमित समय, वही सीमित साधन एवं संसाधन, वही भरी
बिषमताएं एवं विपरीतताएं, वही विरोध व प्रतिरोध, वही सुखदुख और दर्द का
अहसास, वही संबेदनायें व भावनाएं. सबकुछ बैसा ही तो है, फिर वे महान कैसे
और हम सामान्य क्यों ?
मैंने सोचा कि हो न हो ये, सिर्फ ये ऐसे हों, पर सभी ऐसे नहीं होते
होंगे, सभी ऐसे कैसे हो सकते हें; महान लोग तो महान ही होते होंगे न ? बस
इसी से प्रेरित होकर मैंने इतिहास खंगाल डाला, महापुरुषों की जीवनियाँ और
आत्मकथाएं पढीं, पर वही “ढाक के तीन पात”; मैंने उन्हें भी बैसा ही पाया
जैसे ये हें.
मैंने पाया कि सभी महान लोग, चाहे वे ऐतिहासिक हों या वर्तमान; सभी
सर्वसामान्य के सामान ही सामान्य लोग हें. सभी को भूंख-प्यास और
सर्दी-गर्मी सताती है, सभी के दिन में कुछ घंटे दिन और कुछ घंटे रात आती
है, सभी थकते और सोते हें, दर्द में कराहते हें और प्रसन्न होकर
खिलखिलाते हें, एक-एक चोट और खरोंच सभी को एकसा दर्द देती है और छींक और
खांसी एकसा परेशान करती है. सबके पास शक्ति, समय, धन और साधनों की सीमाएं
हें. सभी में भावनाएं हें जो उन्हें उद्वेलित करती हें और संवेदनाएं हें
जो उन्हें झिंझोड़ती हें. सभी में राग और द्वेष भी विद्यमान हें जो उनके
विवेक को प्रभावित करते हें, सभी के कुछ, मात्र कुछ अपने और शेष सब पराये
हें जो उनमें आत्मीयता और हेयता का भाव पैदा करते हें. यही सबतो हमारे
साथ भी होता है, फिर हम उपलब्धि विहीन और वे उपलब्धिवान क्यों, फिर हम सब
सामान्य कैसे और वे महान क्यों ?
कभी-कभी तो ये कथित महान लोग बड़े कमजोर साबित होते हें जो किसी की छोटीसी
पीड़ा देखकर विचलित हो जाते हें, अपने प्रति विरोध के मामूली स्वर सुनकर
अतिक्रोधित या खेद्खिन्न हो जाते हें या किसी के सामान्य से विश्वासघात
से बिखर जाते हें. हम जैसे सामान्य लोगों के साथ तो रोज ही, कदम-कदम पर
ऐसा होता ही रहता है पर हमें तो इससे फर्क ही नहीं पड़ता है.
प्रश्न यह है कि जब हम सब एक जैसे ही हें तो क्यों और कैसे हममें से ही
एक व्यक्ति महान उपलब्धियों के साथ महान बन जाता है और दूसरा जीवन के
अंतिम पायदान पर खड़ा होता है ?
यदि हम द्रष्टिपात करें तो पायेंगे कि जो लोग महान की श्रेणी में आते हें
उनमें अमूमन निम्नलिखित गुण पाए जाते हें-
- वे स्वप्न द्रष्टा होते हें – सामान्यजन जहां विचारों में दरिद्री
होते हें और स्वप्न देखने में कंजूस, वे बड़ी बात सोचते ही नहीं हें, उनकी
कल्पना के घोड़े दाल-रोटी, भाई-भतीजे, गली-मुहल्ले और आज-कल से आगे दौड़ते
ही नहीं. वहीं महान लोग स्वप्न द्रष्टा होते हें, वे बड़े-बड़े स्वप्न
देखते हें, उनका सोच महान होता है.
भला जो स्वप्न ही नहीं देखेगा वह कुछ करेगा कैसे ?
- वे दूरद्रष्टि होते हें – सामान्यजन आजका और मात्र अपने आसपास का
विचार करता है, महान लोग चारों ही चतुष्टय (द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव)
की अपेक्षा से दूरद्रष्टि होते हें.
वे मात्र अपनी नहीं सोचते सबका ख्याल रखते हें.
वे मात्र यहाँ की नहीं सोचते हें, उनका सोच सार्वभौमिक
होता है, उनके सोच में क्षेत्र की मर्यादा नहीं होती है.
वे मात्र आज का विचार नहीं करते वरन उनके विचार का बिषय
अनंतकाल होता है और इसीलिये उनकी योजनायें दूरगामी हुआ करती हें.
उनके प्रयोजन क्षुद्र नहीं होते, उनके लक्ष्य विशाल होते हें.
- वे विचारवान होते हें – सामान्यजन सोचविचार में वक्त बिताने को वक्त
की बर्बादी मानता है, वह तो बस दौड़ पड़ने में, कर गुजरने में विश्वास रखता
है. महानलोग कोई भी काम करने से पहिले उसके बारे में गहराई से, हर पहलू
से, गुणदोषों के बारे में सम्पूर्ण विचार कर लेते, उनका सिद्दांत होता है
कि “ पूर्व चलने से बटोही बाट की पहिचान करले” आवश्यक्ता होने पर योग्य
पात्रों के साथ विचारविमर्श भी करते हें, तभी आगे बढ़ते हें
- वे अपने विचारों में दृढ होते हें – सामान्यजन अपने विचारों में दृढ
नहीं रह पाता है क्योंकि उसके विचारों के पीछे चिंतन और परिक्षा का वल
नहीं होता है, महान लोग प्रत्येक पहलू का सम्पूर्ण चिंतन और कठोर परीक्षा
करके ही अपने विचारों को आकार देते हें, इसलिए उनके चित्त में अपने
निर्णयों और विचारों के प्रति संदेह नहीं रहता है और वह अपने विचारों में
दृढ रहता है. विचारों में द्रढ़ता के कारण वे संदेह रहित होकर द्रढ़ता
पूर्वक अपने लक्ष्य की और आगे बढ़ते हें.
- उनकी द्रढ़ता प्रबुद्ध होती है, उसमें जड़ता भरी जिद नहीं होती है –
जिद का नाम द्रढ़ता नहीं होता है, विचार रहित जड़तापूर्ण द्रढ़ता जिद कहलाती
है और विचारपूर्ण, तर्कपूर्ण जिद का नाम ही द्रढ़ता है.महान लोग जिद्दी
नहीं होते हें पर वे अपने विचारों में दृढ अवश्य होते हें, यही कारण है
कि वे आत्मविश्वास पूर्वक अपने कदम आगे बढाते हें.
- वे साधनों की पवित्रता के प्रति सजग होते हें -
- वे धैर्यवान होते हें – सामान्यजन के व्यक्तित्व में व्याप्त अधीरता
उन्हें सफल नहीं होने देती है, उनमें इन्तजार का धरी नहीं होता है, वे
अंकुरण से पूर्व ही जमीन खोदकर बीज में हो रहे विकास को देखने का लोभ
संबरण नहीं कर पाते हें और इस प्रकार अंकुर नष्ट हो जाता है. महान लोग
धैर्यवान होते हें क्योंकि वे जानते हें कि प्रत्येक कार्य के सम्पन्न
होने में एक निश्चित समय तो लगता ही है, एक निश्चित समय से पूर्व अंकुरण
संभव ही नहीं.
- वे सहिष्णु होते हें – सामान्यजन सहिष्णु नहीं होते हें और इसलिए
विभिन्न व्यक्तियों के व्यक्तित्व में व्याप्त वैविध्य के साथ सामंजस्य
स्थापित नहीं कर पाते हें, इसलिए वे एक ऐसी सक्षम और दक्ष टीम नहीं बना
पाते हें जो उन्हें उनके लक्ष्य तक पहुंचा सके. महान लोग अपने व्यक्तित्व
में व्याप्त सहिष्णुता के कारण अपने सहयोगियों की टीम बना लेते हें और
उनके सहयोग से अपने लक्ष्य को साधने में सफल हो जाते हें.
- वे साहसी होते हें – साहस के अभाव में सामान्यजन खतरों से डरकर आगे
बढ़ते ही नहीं हें तब लक्ष्य तक कैसे पहुँच सकते हें. महान लोग संभावित
खतरों की गणना करके, उनसे बचाव के उपाय करते हुए ऐसे खतरे उठा लेते हें
जिन्हें वे वर्दाश्त कर सकते हें और जिनमें उनका सर्वनाश ही संभावित न
हो. इस प्रकार वे कभी खतरों से बचकर या खतरों पर विजय प्राप्त करके अपने
प्रयोजन की सिद्धी कर ही लेते हें.
- वे दुस:साहस नहीं करते – अविवेकी सामान्यजन सामान्य से लाभ के लिए
भी अमूमन अपने आपको ऐसे खतरों में झोंक देते हें जिनमें सर्वनाश की
संभावना हो, जैसेकि किसी की ह्त्या जैसे अपराध कर बैठना, जिसके दंड में
म्रत्यु निश्चित है, ऐसे लोगों की रक्षा भाला कौन, कब तक कर सकता है.
महान लोग अपनी और अपने मिशन की दीर्घायु सुनिश्चित करते हुए इस प्रकार
आगे बढ़ते हें जिसमें उनका अस्तित्व ही संकट में न पड जाए. स्वाधीनता
संग्राम में अन्य क्रांतिकारियों के विपरीत महात्मा गाँधी ने शासन का घोर
विरोध और नीति पूर्वक अवहेलना करते हुए भी अपने आपको ऐसे क्र्त्यों से
बचाए रखा जो शासन की निगाह में प्राणघातक दण्ड का पात्र हो. इस प्रकार
अपने जीवन की रक्षा करते हुए उन्होंने अपने आन्दोलन को दीर्घजीवी बनाया.
उनके वे दीर्घकालीन प्रयास सफल हुए और अंग्रेजों को भारत छोड़ना ही पडा.
किसी कार्य की सफलता के लिए मात्र पर्याप्त शक्ति ही आवशयक नहीं वरन एक
सुनिश्चित काल तक उस शक्ति का प्रयोग भी आवश्यक है, इसलिए अपने अभियान को
दीर्घजीवी बनान भी आवश्यक होता है.
- वे योग्य खतरे मोल लेते हें – “सावधानी हटी और दुर्घटना घटी” इस
प्रकार खतरे तो हर कदम पर व्याप्त हें. जो लोग खतरों से डरकर अपने कदम ही
नहीं बढाते वे सफल कैसे होंगे ? महान लोग खतरों को भांपते हुए, उनसे बचाव
के उपाय करने के बाबजूद उपस्थित रही खतरों की सम्भावना को स्वीकारते हुए
आगे बढ़ ही जाते हें. यूं मानव ने तो अपनेआप को काफी कुछ हद तक सुरक्षित
कर लिया है, पर ज़रा पशुओं के बारे में तो विचार कीजिये ! भोजन के लिए
उन्हें अपने अपेक्षाकृत सुरक्षित स्थान से बाहर निकलना तो अपरिहार्य
(unavoidable) है और बाहर निकलने पर भोजन मिलने की संभावना के साथ स्वयं
किसी और का भोजन बन जाने की संभावना अत्यंत प्रवल है. अब बे क्या करें ?
यदि घर में ही छुपकर बैठे रहें तो भूंखो मर जायेंगे और बाहर निकले तो
चारों ओर खतरे ही खतरे हें, इसलिए खतरे मोल लेना और खतरों के बीच ही जीना
तो उनकी नियति ही है. अरे ! वे अपने घर में ही कहाँ सुरक्षित हें, उनके
घरों में ताले तो लगते नहीं, कोई भी उनके घर में घुसकर भी उन्हें मार
सकता है. कहा भी है न कि “मैं बौरी डूबन दरी , रही किनारे बैठ, जिन खोजा
तीन पाइयां, गहरे पानी पैठ”
- वे गल्तियाँ करने से डरते नहीं – सामान्यजन गल्तियाँ करने से डरते
हें और उनसे बचने के लिए कुछ करते ही नहीं, वे यह तो भूल ही जाते हें कि
कुछ नहीं करना तो सबसे बड़ी गल्ती है. जब कुछ करेंगे ही नहीं तो कुछ भी
होगा कैसे ? इस प्रकार वे अपने जीवन में असफल ही बने रहते हें. महान लोग
गल्तियाँ करने से हिचकते तो हें पर डरते नहीं, वे गल्तियों से सीखते
अवश्य हें, वे गलतियों से बचने का प्रयास करते हें, गल्तियाँ करते भी
हें, उनसे सीखते हें, उन्हें सुधारते हें और आगे बढ़ जाते हें, सफल हो
जाते हें.
- वे गल्तियों से सीखते हें – सामन्य लोग गल्तियाँ दोहराते रहते हें,
गल्तियों से सीखते नहीं. महान लोग गलतियों से सीखकर गल्ती करके चुकाई गई
कीमत बसूल कर लेते हें . गल्तियाँ तो होंगीं ही, यह तो असंभव ही है कि
गल्तियाँ हों ही नहीं, तबतक, जबतक कि व्यक्ति अपने कार्य में सम्पूर्ण
दक्ष और सर्वज्ञ ही न हो. जो गलतियों से सीखते नहीं वे जीवनभर ठोकरें
खाते हें.
- वे प्रतिबद्ध (commited) होते हें – सामान्य लोग भी कुछ न कुछ तो
करते ही हें, वे कुछ न कुछ करते तो रहते ही हें पर अपने कर्तृत्व और
कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध नहीं होते. जब चाहा तब कुछ कर लिया, नहीं
किया तो नहीं किया, कुछ हो गया तो ठीक, नहीं हुआ तो ठीक, जैसा हो गया वही
ठीक. ऐसे लोग और उनकी उपलब्धियां महान नहीं हो सकती हें क्योंकि कोई उनके
ऊपर निर्भर नहीं रह सकता है. महान लोग जो जिम्मेदारी स्वीकार करते हें तो
उसके प्रति प्रतिबद्ध होते हें, वे हर कीमत पर उसका निर्बाह करते हें,
लोग उनके ऊपर निर्भर रहते हें, उनपर भरोसा करते हें इसलिए उन्हें अपने
कर्तृत्व का प्रतिसाद मिलता है.
क्या आप खरीदारी करने के लिए ऐसी किसी दूकान पर जाना पसंद करेंगे जिसके
बारे में भरोसा नहीं कि खुली भी हो या न भी खुली हो, यदि खुली भी हो तो
इक्षित वस्तु उपलब्ध हो या न हो, यदि मिल भी जाए तो पता नहीं वह कितना
दाम मागने लगे ?
नहीं न ?
- वे निष्ठावान (sincere) होते हें – सामान्य लोग अपने कर्तव्य के
प्रति ही गंभीर नहीं होते हें, उनके कार्य में कुछ न कुछ कमियाँ बनी ही
रहती हें और इसलिए उन्हें अपने कर्त्रत्व का उचित प्रतिसाद नहीं मिलता
है. मानलीजिये उसने कोई पकवान बनाया और उसमें नमक थोड़ा कम डाला तो मेहनत
तो पूरी हुई, सामग्री भी पूरी लगी पर दो कौड़ी का नमक कम रह जाने से पकवान
ही बेस्वाद रह गया, ज़रा कल्पना तो कीजिये कि नमक थोड़ा कम रहने की जगह
थोड़ा अधिक डल जाता तो क्या होता ? यदि नमक की जगह मिर्ची दुगुनी डल जाती
तो क्या होता ? तबतो कोई उसे खाना तो दूर चख भी न पाता. इसप्रकार सबकुछ
देकर भी उस निष्ठाविहीन व्यक्ति को कुछ भी नहीं मिलता है
महान लोग अपने काम निष्ठा पूर्वक करते हें इसलिए वे सफल होते हें.
- वे प्रयोजन सिद्धी के लिए काम करते हें किसी को दिखाने के लिए नहीं
– “जगती वणिक व्रत्ति है रखती, उसे चाहती जिससे चखती, काम नहीं परिणाम
निरखती” एक ओर तो दुनियाँ कि व्रत्ति ऐसी है कि वह आपका काम या श्रम नहीं
देखती है, आखिर उसे उससे प्रयोजन ही क्या है ? उसे तो परिणाम से प्रयोजन
है, यदि आने कठोर श्रम किया और उनका काम नहीं हुआ तो वह उनके लिए अर्थहीन
है. सामान्यजन इस बात को समझे बगैर मात्र अपने मालिक को दिखाने के लिए
काम करता है और जब मालिक न देख रहा हो तो काम बंद कर देता है. ऐसे लोग
जीवन में उंचाइयां नहीं छूते. महान लोग साध्य की सिद्धी के लिए काम करते
हें, दिखाने के लिए कुछ भी नहीं.
जो लोग दुसरे को दिखाने के लिए काम करते हें वे गुलाम वृत्ति वाले गुलाम
मार्गी होते हें और जो स्वत:स्फूर्त प्रेरणा से काम करते हें वे
स्वामीभाव वाले होते हें.
प्रथम प्रकार के लोग चाहे किसी की नौकरी न भी करें (ऐसे लोगों को अपने
यहाँ रखेगा भी कौन ?) तब भी गुलाम वृत्ति वाला होने से गुलाम ही है और
दूसरे प्रकार का व्यक्ति भले ही किसी के लिए कार्य करता हो पर
स्वामीव्रत्ति वाला होने से स्वामी के सामान ही सम्मान और व्यवहार पाता
है.
- वे प्रगतिशील होते हें – समय के साथ सबकुछ बदलता है, तकनीक,
जीवनशैली, शिक्षा, आवश्यकताएं आदि. महान लोग समय के साथ कदम मिलाकर चलते
हें, अमूमन वे समय से आगे बने रहने का प्रयास करते हें. यदि वे समय के
साथ न बदलें तो उनकी महानता तो कम नहीं होगी पर वे इतिहास के महान हो
जायेंगे, वर्तमान के नहीं रहेंगे.
- वे उदार होते हें पर अपव्ययी नहीं – न तो कंजूसी का नाम मितव्ययता
है और न ही अपव्ययता का नाम उदारता दोनों ही बादे दोष हें, प्रगति में
बाधक हें. महान लोग दोनों ही प्रवृत्तियों से ग्रसित नहीं होते हें, और
वे एक संतुलित जीवन जीते हें.
- वे क्षमाशील होते हें पर भूलों को अनदेखा नहीं करते – महान लोग
भूलों को अनदेखा नहीं करते हें वरन उनपर ध्यान देकर उन्हें दूर करने का
प्रयास करते हें क्योंकि भूलों को अनदेखा करना तो उन्हें संरक्षण प्रदान
करना है. हाँ वे क्षमायाचना करने पर और भूल सुधार करने पर भूलों को माफ़
अवश्य कर देते हें क्योंकि यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो बात वहीं रुक
जायेगी, वे आगे कैसे बढ़ेंगे ?
- वे अनुशासित और अनुशासनप्रिय होते हें – जो अनुशासित है उसका
व्यवहार pradictable होता है, उसके बारे में हर व्यक्ति यह कल्पना कर
सकता है कि अमुक बिषय या परिस्थिति में उसका व्यवहार कैसा होगा , निर्णय
क्या होगा. उसकी यही pradictavility उसे विश्वसनीय बनाती है, जीवन में
महान काम करने के लिए हमें अधिकतम लोगों का विश्वास जीतना अत्यंत आवश्यक
है.
- वे कठोर मगर सम्बेदनशील होते हें – महान लोग कठोर होते हें या यूं
कहिये कि कठोर दिखाई देते हें क्योंकि वे कठोरता से आचारसंहिता का पालन
करते हें. ऐसा किये बिना सफलता की कल्पना भी नहीं की जा सकती है, किन्तु
उनकी यह कठोरता उनकी सम्बेदनशीलता की विरोधी नहीं है. वे अत्यंत
संवेदनशील भी होते हें व हर व्यक्ति, घटना और परिवर्तन पर तीक्ष्ण निगाह
रखते हें. किसी वस्तु की समीक्षा करते वक्त वे मानवीयता के पहलू की
अनदेखी नहीं करते हें.
- वे समय का सदुपयोग करते हें - सभी के पास दिन में २४ घंटे ही होते
हें, किसी के पास न तो एक मिनिट कम और न ही इक मिनिट अधिक और यह बात तो
तय है कि २४ घंटों में वे २४ घंटे बीत ही जाने हें, कोई उन्हें सहेजकर रख
नहीं सकता है कि फिर कभी जरूरत पड़ने पर काम आयेंगे. अब यह हम पर निर्भर
करता है कि वे २४ घंटे हम किस प्रकार व्यतीत करते हें, व्यसनों में पड़कर
या सोकर बर्बाद कर देते हें या अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते हें. महान लोग
अपने समय का सम्पूर्ण उपयोग करते हें, वे यह जानते हें कि किस कार्य को
कितना समय दिया जाए.
- वे सही समय पर योग्य कार्य करते हें – सामान्य लोग बिना देशकाल का
विचार किये कभी भी, कहीं भी, कुछ भी काम प्रारम्भ कर देते हें, इस तरह
देश-काल के विपरीत होने उन्हें उनके कार्य में वांक्षित सफलता नहीं मिलती
है, महान लोग समय को पहिचानते हें, सही वक्त पर योग्य कार्य करते हें,
अपने समय का सम्पूर्ण और सही उपयोग करते हें और उचित समय पर योग्य विधि
से सही दिशा में किये गए प्रयत्न तो फलदायी होते ही हें. जैसेकि योग्य
ऋतु में, योग्य भूमि पर, सही विधि से खेती करने पर योग्यतम और अधिकतम
फलों की प्राप्ति होती है.
- वे छोटी-छोटी बातों में वक्त बर्बाद नहीं करते – जहां एक और
सामान्यजन छोटी-छोटी बातों में ही उलझा रहता है वहीं महान लोग प्रयोजनभूत
मामलों में ख्याल तो छोटी से छोटी बात का भी रखते हें, उस छोटी से छोटी
बात को भी अनदेखा नहीं करते जो सफलता के लिए आवश्यक हो, पर छोटी बातों
में उलझते नहीं, उलझे नहीं रहते, उन्हें सुलझाकर आगे बढ़ जाते हें.
- वे समय के पाबंद होते हें – कहते हें कि “ जो समय की कद्र करता है ,
समय उसकी कद्र करता है “ स्वाभाविक ही ही कि जो समय की परवाह न करे समय
कैसे उसकी परवाह करेगा. सामान्य लोग समय की इस तासीर को नहीं पहिचानते
हें इसलिए बे नाचीज ही बने रहते हें. जो समय का पाबंद नहीं वह बहुत कुछ
ही नहीं, अधिकतम मौकों पर सबकुछ खो देता है. यदि आप ट्रेन छूट जाने के एक
मिनिट, सिर्फ एक मिनिट बाद पहुँचते हें तो आप कितना खोएंगे ? सिर्फ कुछ
ही ?
नहीं आप सब कुछ खो देते हें क्योंकि आपका लक्ष्य था उस ट्रेन में यात्रा
करना और अब आप उसमें यात्रा नहीं कर पायेंगे.
कोई जादू नहीं, कोई भी कार्य अपने तरीके से ही होता है, उसमें निर्धारित
समय और शक्ति लगती ही है, उसमें सफलता या असफलता की संभावनाएं बनी ही
रहती हें.
इस नियम का कोई भी अपवाद नहीं है.
जिन लोगों को कहीं चमत्कार
वे लोग जिनकी उपलब्धियाँ महान हैं, सामान्यजन ही होते हैं और सफलता और
असफलता की समस्त खुली सम्भावनाओं के बीच, बड़ी सूझबूझ के साथ कठोर श्रम
करते हैं, स्वाभाविक ही है कि उनकी उपलब्धियाँ महान हों और लोग उन्हें
चमत्कारी पुरुष मान बैठें और फिर उनसे अपने-अपने पक्ष में चमत्कारों की
आशा करने लगें, पर उन्हें निराशा ही हाथ लगती है क्योंकि चमत्कार या जादू
तो सिर्फ एक ही है और वह है सुनिश्चित लक्ष्य, उत्तम कार्य योजना, पक्का
इरादा और कड़ी मेहनत और इन सबके साथ जोखम उठाने की तैयारी.
हम सभी लोग जीवन में उंचाइयां छूने की और महान उपलब्धियां हासिल करने की ख्वाहिशें रखते हें, उसके लिए प्रयत्न भी करते हें पर हमारी उपलब्धियां बहुत कम होती हें और कदम-कदम पर अनेकों कठिनाइयों का सामना होता ही रहता है.
एक ओर हम हें जो कुछ भी नहीं कर पाए और दूसरी ओर अनेकों वे लोग हें जो आकाश में ऊँचे उड़ रहे हें, नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हें.
हमें लगता है वे कुछ अलग हें, वे हम जैसे नहीं, वे हममें से नहीं. शायद
वे चमत्कारी लोग हें या उन्हें किसी महाशक्ति का आशीर्वाद प्राप्त है या
कोई वरदान मिल गया है.
अंतत: होता यह है कि अधिकतम लोग तो यह मानकर कि “हम वे नहीं, हम उन जैसे नही. वे भिन्न हें महान हें, हम भिन्न हें सामान्यजन हें और हमें न तो उन जैसे सपने ही देखने चाहिए और न ही हमें उनकी देखादेखी करने का अधिकार है. हमें अपनी सीमाएं पहिचाननी चाहिए और अपनी सीमाओं में ही रहना चाहिए”.
इसप्रकार बस सामान्य ही नहीं अति सामान्य बने रहना ही अपनी नियति मानकर वे जीवन काटने के लिए तैयार हो जाते हें.
कुछ लोग आसानी से हथियार नहीं डालते, उन्हें लगता है कि जरूर इन्हें किसी
देवी-देवता या संत-महंत का आशीर्वाद प्राप्त है, या वे कोई जादूटोना या
तंत्रमंत्र जानते हें, इसीलिये उनके सब काम चुटकियाँ बजाते ही हो जाते
हें. यह सोचकर वे लोग हमेश बस उन चमत्कारी देवी-देवता, संत-महंत, मंदिर
या तीर्थ, जादूटोने या तंत्रमंत्र की खोज में लगे रहते हें जो उनकी नैया
पार लगादे. अंतत: ऐसे लोगों के हाथ भी कुछ नहीं लगता शिवाय इसके कि वे इन
सबके चक्कर में अपनी शक्ति, समय व श्रम और बर्बाद करते रहते हें,
फलस्वरूप वह भी गँवा बैठते हें जो उनके पास है, रूपया-पैसा, चैन-शुकून,
शक्ति-स्वास्थ्य, समय और उम्र.
एक बात और है कि ये लोग अपने अनुभवों से सीखना भी नहीं जानते हें, ये
सुधरना ही नहीं चाहते हें. लगातार असफलताओं के बाबजूद बस जुटे ही रहते
हें, लगातार, बिना थके, बिना रुके, अनवरत, अहिर्निश.
ये वे लोग हें जिनमें वे सब गुण मौजूद हें जो सफलता पाने के लिए आवश्यक
हें शिवाय दिशा के. ये असफल इसलिए हें कि इनकी दिशा गलत है. इनकी
इक्षाशक्ति, द्रढ़ता, संकल्प, प्रयत्न, श्रम और समर्पण में कोई कमी नहीं,
जो सफलता के लिए आवश्यक हें.
मैंने महान लोगों के बीच ही जन्म लिया, पला-बढ़ा. अनेक क्षेत्रों के
अनेकों महान लोगों के निकट संपर्क में आया, उनके जीवन और उसमें घटित होने
वाले छोटे-बड़े सभी प्रकार के घटनाक्रमों का साक्षी रहा, मात्र साक्षी भाव
से ही नहीं वरन भोक्ता भाव से भी और मुझे ऐसे ही अनेकों लोगों की
सद्भावना, शुभेक्षा, आशीर्वाद और सक्रिय सहयोग भी प्राप्त है, वैचारिक भी
और भौतिक भी. उनका अंतर-बाहर सबकुछ मेरे समक्ष प्रकट है.
मैंने पाया कि उनमें किसी भी जनसामान्य की अपेक्षा कुछ भी तो विशेष नहीं,
वही कमजोर काया, वही सीमित समय, वही सीमित साधन एवं संसाधन, वही भरी
बिषमताएं एवं विपरीतताएं, वही विरोध व प्रतिरोध, वही सुखदुख और दर्द का
अहसास, वही संबेदनायें व भावनाएं. सबकुछ बैसा ही तो है, फिर वे महान कैसे
और हम सामान्य क्यों ?
मैंने सोचा कि हो न हो ये, सिर्फ ये ऐसे हों, पर सभी ऐसे नहीं होते
होंगे, सभी ऐसे कैसे हो सकते हें; महान लोग तो महान ही होते होंगे न ? बस
इसी से प्रेरित होकर मैंने इतिहास खंगाल डाला, महापुरुषों की जीवनियाँ और
आत्मकथाएं पढीं, पर वही “ढाक के तीन पात”; मैंने उन्हें भी बैसा ही पाया
जैसे ये हें.
मैंने पाया कि सभी महान लोग, चाहे वे ऐतिहासिक हों या वर्तमान; सभी
सर्वसामान्य के सामान ही सामान्य लोग हें. सभी को भूंख-प्यास और
सर्दी-गर्मी सताती है, सभी के दिन में कुछ घंटे दिन और कुछ घंटे रात आती
है, सभी थकते और सोते हें, दर्द में कराहते हें और प्रसन्न होकर
खिलखिलाते हें, एक-एक चोट और खरोंच सभी को एकसा दर्द देती है और छींक और
खांसी एकसा परेशान करती है. सबके पास शक्ति, समय, धन और साधनों की सीमाएं
हें. सभी में भावनाएं हें जो उन्हें उद्वेलित करती हें और संवेदनाएं हें
जो उन्हें झिंझोड़ती हें. सभी में राग और द्वेष भी विद्यमान हें जो उनके
विवेक को प्रभावित करते हें, सभी के कुछ, मात्र कुछ अपने और शेष सब पराये
हें जो उनमें आत्मीयता और हेयता का भाव पैदा करते हें. यही सबतो हमारे
साथ भी होता है, फिर हम उपलब्धि विहीन और वे उपलब्धिवान क्यों, फिर हम सब
सामान्य कैसे और वे महान क्यों ?
कभी-कभी तो ये कथित महान लोग बड़े कमजोर साबित होते हें जो किसी की छोटीसी
पीड़ा देखकर विचलित हो जाते हें, अपने प्रति विरोध के मामूली स्वर सुनकर
अतिक्रोधित या खेद्खिन्न हो जाते हें या किसी के सामान्य से विश्वासघात
से बिखर जाते हें. हम जैसे सामान्य लोगों के साथ तो रोज ही, कदम-कदम पर
ऐसा होता ही रहता है पर हमें तो इससे फर्क ही नहीं पड़ता है.
प्रश्न यह है कि जब हम सब एक जैसे ही हें तो क्यों और कैसे हममें से ही
एक व्यक्ति महान उपलब्धियों के साथ महान बन जाता है और दूसरा जीवन के
अंतिम पायदान पर खड़ा होता है ?
यदि हम द्रष्टिपात करें तो पायेंगे कि जो लोग महान की श्रेणी में आते हें
उनमें अमूमन निम्नलिखित गुण पाए जाते हें-
- वे स्वप्न द्रष्टा होते हें – सामान्यजन जहां विचारों में दरिद्री
होते हें और स्वप्न देखने में कंजूस, वे बड़ी बात सोचते ही नहीं हें, उनकी
कल्पना के घोड़े दाल-रोटी, भाई-भतीजे, गली-मुहल्ले और आज-कल से आगे दौड़ते
ही नहीं. वहीं महान लोग स्वप्न द्रष्टा होते हें, वे बड़े-बड़े स्वप्न
देखते हें, उनका सोच महान होता है.
भला जो स्वप्न ही नहीं देखेगा वह कुछ करेगा कैसे ?
- वे दूरद्रष्टि होते हें – सामान्यजन आजका और मात्र अपने आसपास का
विचार करता है, महान लोग चारों ही चतुष्टय (द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव)
की अपेक्षा से दूरद्रष्टि होते हें.
वे मात्र अपनी नहीं सोचते सबका ख्याल रखते हें.
वे मात्र यहाँ की नहीं सोचते हें, उनका सोच सार्वभौमिक
होता है, उनके सोच में क्षेत्र की मर्यादा नहीं होती है.
वे मात्र आज का विचार नहीं करते वरन उनके विचार का बिषय
अनंतकाल होता है और इसीलिये उनकी योजनायें दूरगामी हुआ करती हें.
उनके प्रयोजन क्षुद्र नहीं होते, उनके लक्ष्य विशाल होते हें.
- वे विचारवान होते हें – सामान्यजन सोचविचार में वक्त बिताने को वक्त
की बर्बादी मानता है, वह तो बस दौड़ पड़ने में, कर गुजरने में विश्वास रखता
है. महानलोग कोई भी काम करने से पहिले उसके बारे में गहराई से, हर पहलू
से, गुणदोषों के बारे में सम्पूर्ण विचार कर लेते, उनका सिद्दांत होता है
कि “ पूर्व चलने से बटोही बाट की पहिचान करले” आवश्यक्ता होने पर योग्य
पात्रों के साथ विचारविमर्श भी करते हें, तभी आगे बढ़ते हें
- वे अपने विचारों में दृढ होते हें – सामान्यजन अपने विचारों में दृढ
नहीं रह पाता है क्योंकि उसके विचारों के पीछे चिंतन और परिक्षा का वल
नहीं होता है, महान लोग प्रत्येक पहलू का सम्पूर्ण चिंतन और कठोर परीक्षा
करके ही अपने विचारों को आकार देते हें, इसलिए उनके चित्त में अपने
निर्णयों और विचारों के प्रति संदेह नहीं रहता है और वह अपने विचारों में
दृढ रहता है. विचारों में द्रढ़ता के कारण वे संदेह रहित होकर द्रढ़ता
पूर्वक अपने लक्ष्य की और आगे बढ़ते हें.
- उनकी द्रढ़ता प्रबुद्ध होती है, उसमें जड़ता भरी जिद नहीं होती है –
जिद का नाम द्रढ़ता नहीं होता है, विचार रहित जड़तापूर्ण द्रढ़ता जिद कहलाती
है और विचारपूर्ण, तर्कपूर्ण जिद का नाम ही द्रढ़ता है.महान लोग जिद्दी
नहीं होते हें पर वे अपने विचारों में दृढ अवश्य होते हें, यही कारण है
कि वे आत्मविश्वास पूर्वक अपने कदम आगे बढाते हें.
- वे साधनों की पवित्रता के प्रति सजग होते हें -
- वे धैर्यवान होते हें – सामान्यजन के व्यक्तित्व में व्याप्त अधीरता
उन्हें सफल नहीं होने देती है, उनमें इन्तजार का धरी नहीं होता है, वे
अंकुरण से पूर्व ही जमीन खोदकर बीज में हो रहे विकास को देखने का लोभ
संबरण नहीं कर पाते हें और इस प्रकार अंकुर नष्ट हो जाता है. महान लोग
धैर्यवान होते हें क्योंकि वे जानते हें कि प्रत्येक कार्य के सम्पन्न
होने में एक निश्चित समय तो लगता ही है, एक निश्चित समय से पूर्व अंकुरण
संभव ही नहीं.
- वे सहिष्णु होते हें – सामान्यजन सहिष्णु नहीं होते हें और इसलिए
विभिन्न व्यक्तियों के व्यक्तित्व में व्याप्त वैविध्य के साथ सामंजस्य
स्थापित नहीं कर पाते हें, इसलिए वे एक ऐसी सक्षम और दक्ष टीम नहीं बना
पाते हें जो उन्हें उनके लक्ष्य तक पहुंचा सके. महान लोग अपने व्यक्तित्व
में व्याप्त सहिष्णुता के कारण अपने सहयोगियों की टीम बना लेते हें और
उनके सहयोग से अपने लक्ष्य को साधने में सफल हो जाते हें.
- वे साहसी होते हें – साहस के अभाव में सामान्यजन खतरों से डरकर आगे
बढ़ते ही नहीं हें तब लक्ष्य तक कैसे पहुँच सकते हें. महान लोग संभावित
खतरों की गणना करके, उनसे बचाव के उपाय करते हुए ऐसे खतरे उठा लेते हें
जिन्हें वे वर्दाश्त कर सकते हें और जिनमें उनका सर्वनाश ही संभावित न
हो. इस प्रकार वे कभी खतरों से बचकर या खतरों पर विजय प्राप्त करके अपने
प्रयोजन की सिद्धी कर ही लेते हें.
- वे दुस:साहस नहीं करते – अविवेकी सामान्यजन सामान्य से लाभ के लिए
भी अमूमन अपने आपको ऐसे खतरों में झोंक देते हें जिनमें सर्वनाश की
संभावना हो, जैसेकि किसी की ह्त्या जैसे अपराध कर बैठना, जिसके दंड में
म्रत्यु निश्चित है, ऐसे लोगों की रक्षा भाला कौन, कब तक कर सकता है.
महान लोग अपनी और अपने मिशन की दीर्घायु सुनिश्चित करते हुए इस प्रकार
आगे बढ़ते हें जिसमें उनका अस्तित्व ही संकट में न पड जाए. स्वाधीनता
संग्राम में अन्य क्रांतिकारियों के विपरीत महात्मा गाँधी ने शासन का घोर
विरोध और नीति पूर्वक अवहेलना करते हुए भी अपने आपको ऐसे क्र्त्यों से
बचाए रखा जो शासन की निगाह में प्राणघातक दण्ड का पात्र हो. इस प्रकार
अपने जीवन की रक्षा करते हुए उन्होंने अपने आन्दोलन को दीर्घजीवी बनाया.
उनके वे दीर्घकालीन प्रयास सफल हुए और अंग्रेजों को भारत छोड़ना ही पडा.
किसी कार्य की सफलता के लिए मात्र पर्याप्त शक्ति ही आवशयक नहीं वरन एक
सुनिश्चित काल तक उस शक्ति का प्रयोग भी आवश्यक है, इसलिए अपने अभियान को
दीर्घजीवी बनान भी आवश्यक होता है.
- वे योग्य खतरे मोल लेते हें – “सावधानी हटी और दुर्घटना घटी” इस
प्रकार खतरे तो हर कदम पर व्याप्त हें. जो लोग खतरों से डरकर अपने कदम ही
नहीं बढाते वे सफल कैसे होंगे ? महान लोग खतरों को भांपते हुए, उनसे बचाव
के उपाय करने के बाबजूद उपस्थित रही खतरों की सम्भावना को स्वीकारते हुए
आगे बढ़ ही जाते हें. यूं मानव ने तो अपनेआप को काफी कुछ हद तक सुरक्षित
कर लिया है, पर ज़रा पशुओं के बारे में तो विचार कीजिये ! भोजन के लिए
उन्हें अपने अपेक्षाकृत सुरक्षित स्थान से बाहर निकलना तो अपरिहार्य
(unavoidable) है और बाहर निकलने पर भोजन मिलने की संभावना के साथ स्वयं
किसी और का भोजन बन जाने की संभावना अत्यंत प्रवल है. अब बे क्या करें ?
यदि घर में ही छुपकर बैठे रहें तो भूंखो मर जायेंगे और बाहर निकले तो
चारों ओर खतरे ही खतरे हें, इसलिए खतरे मोल लेना और खतरों के बीच ही जीना
तो उनकी नियति ही है. अरे ! वे अपने घर में ही कहाँ सुरक्षित हें, उनके
घरों में ताले तो लगते नहीं, कोई भी उनके घर में घुसकर भी उन्हें मार
सकता है. कहा भी है न कि “मैं बौरी डूबन दरी , रही किनारे बैठ, जिन खोजा
तीन पाइयां, गहरे पानी पैठ”
- वे गल्तियाँ करने से डरते नहीं – सामान्यजन गल्तियाँ करने से डरते
हें और उनसे बचने के लिए कुछ करते ही नहीं, वे यह तो भूल ही जाते हें कि
कुछ नहीं करना तो सबसे बड़ी गल्ती है. जब कुछ करेंगे ही नहीं तो कुछ भी
होगा कैसे ? इस प्रकार वे अपने जीवन में असफल ही बने रहते हें. महान लोग
गल्तियाँ करने से हिचकते तो हें पर डरते नहीं, वे गल्तियों से सीखते
अवश्य हें, वे गलतियों से बचने का प्रयास करते हें, गल्तियाँ करते भी
हें, उनसे सीखते हें, उन्हें सुधारते हें और आगे बढ़ जाते हें, सफल हो
जाते हें.
- वे गल्तियों से सीखते हें – सामन्य लोग गल्तियाँ दोहराते रहते हें,
गल्तियों से सीखते नहीं. महान लोग गलतियों से सीखकर गल्ती करके चुकाई गई
कीमत बसूल कर लेते हें . गल्तियाँ तो होंगीं ही, यह तो असंभव ही है कि
गल्तियाँ हों ही नहीं, तबतक, जबतक कि व्यक्ति अपने कार्य में सम्पूर्ण
दक्ष और सर्वज्ञ ही न हो. जो गलतियों से सीखते नहीं वे जीवनभर ठोकरें
खाते हें.
- वे प्रतिबद्ध (commited) होते हें – सामान्य लोग भी कुछ न कुछ तो
करते ही हें, वे कुछ न कुछ करते तो रहते ही हें पर अपने कर्तृत्व और
कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध नहीं होते. जब चाहा तब कुछ कर लिया, नहीं
किया तो नहीं किया, कुछ हो गया तो ठीक, नहीं हुआ तो ठीक, जैसा हो गया वही
ठीक. ऐसे लोग और उनकी उपलब्धियां महान नहीं हो सकती हें क्योंकि कोई उनके
ऊपर निर्भर नहीं रह सकता है. महान लोग जो जिम्मेदारी स्वीकार करते हें तो
उसके प्रति प्रतिबद्ध होते हें, वे हर कीमत पर उसका निर्बाह करते हें,
लोग उनके ऊपर निर्भर रहते हें, उनपर भरोसा करते हें इसलिए उन्हें अपने
कर्तृत्व का प्रतिसाद मिलता है.
क्या आप खरीदारी करने के लिए ऐसी किसी दूकान पर जाना पसंद करेंगे जिसके
बारे में भरोसा नहीं कि खुली भी हो या न भी खुली हो, यदि खुली भी हो तो
इक्षित वस्तु उपलब्ध हो या न हो, यदि मिल भी जाए तो पता नहीं वह कितना
दाम मागने लगे ?
नहीं न ?
- वे निष्ठावान (sincere) होते हें – सामान्य लोग अपने कर्तव्य के
प्रति ही गंभीर नहीं होते हें, उनके कार्य में कुछ न कुछ कमियाँ बनी ही
रहती हें और इसलिए उन्हें अपने कर्त्रत्व का उचित प्रतिसाद नहीं मिलता
है. मानलीजिये उसने कोई पकवान बनाया और उसमें नमक थोड़ा कम डाला तो मेहनत
तो पूरी हुई, सामग्री भी पूरी लगी पर दो कौड़ी का नमक कम रह जाने से पकवान
ही बेस्वाद रह गया, ज़रा कल्पना तो कीजिये कि नमक थोड़ा कम रहने की जगह
थोड़ा अधिक डल जाता तो क्या होता ? यदि नमक की जगह मिर्ची दुगुनी डल जाती
तो क्या होता ? तबतो कोई उसे खाना तो दूर चख भी न पाता. इसप्रकार सबकुछ
देकर भी उस निष्ठाविहीन व्यक्ति को कुछ भी नहीं मिलता है
महान लोग अपने काम निष्ठा पूर्वक करते हें इसलिए वे सफल होते हें.
- वे प्रयोजन सिद्धी के लिए काम करते हें किसी को दिखाने के लिए नहीं
– “जगती वणिक व्रत्ति है रखती, उसे चाहती जिससे चखती, काम नहीं परिणाम
निरखती” एक ओर तो दुनियाँ कि व्रत्ति ऐसी है कि वह आपका काम या श्रम नहीं
देखती है, आखिर उसे उससे प्रयोजन ही क्या है ? उसे तो परिणाम से प्रयोजन
है, यदि आने कठोर श्रम किया और उनका काम नहीं हुआ तो वह उनके लिए अर्थहीन
है. सामान्यजन इस बात को समझे बगैर मात्र अपने मालिक को दिखाने के लिए
काम करता है और जब मालिक न देख रहा हो तो काम बंद कर देता है. ऐसे लोग
जीवन में उंचाइयां नहीं छूते. महान लोग साध्य की सिद्धी के लिए काम करते
हें, दिखाने के लिए कुछ भी नहीं.
जो लोग दुसरे को दिखाने के लिए काम करते हें वे गुलाम वृत्ति वाले गुलाम
मार्गी होते हें और जो स्वत:स्फूर्त प्रेरणा से काम करते हें वे
स्वामीभाव वाले होते हें.
प्रथम प्रकार के लोग चाहे किसी की नौकरी न भी करें (ऐसे लोगों को अपने
यहाँ रखेगा भी कौन ?) तब भी गुलाम वृत्ति वाला होने से गुलाम ही है और
दूसरे प्रकार का व्यक्ति भले ही किसी के लिए कार्य करता हो पर
स्वामीव्रत्ति वाला होने से स्वामी के सामान ही सम्मान और व्यवहार पाता
है.
- वे प्रगतिशील होते हें – समय के साथ सबकुछ बदलता है, तकनीक,
जीवनशैली, शिक्षा, आवश्यकताएं आदि. महान लोग समय के साथ कदम मिलाकर चलते
हें, अमूमन वे समय से आगे बने रहने का प्रयास करते हें. यदि वे समय के
साथ न बदलें तो उनकी महानता तो कम नहीं होगी पर वे इतिहास के महान हो
जायेंगे, वर्तमान के नहीं रहेंगे.
- वे उदार होते हें पर अपव्ययी नहीं – न तो कंजूसी का नाम मितव्ययता
है और न ही अपव्ययता का नाम उदारता दोनों ही बादे दोष हें, प्रगति में
बाधक हें. महान लोग दोनों ही प्रवृत्तियों से ग्रसित नहीं होते हें, और
वे एक संतुलित जीवन जीते हें.
- वे क्षमाशील होते हें पर भूलों को अनदेखा नहीं करते – महान लोग
भूलों को अनदेखा नहीं करते हें वरन उनपर ध्यान देकर उन्हें दूर करने का
प्रयास करते हें क्योंकि भूलों को अनदेखा करना तो उन्हें संरक्षण प्रदान
करना है. हाँ वे क्षमायाचना करने पर और भूल सुधार करने पर भूलों को माफ़
अवश्य कर देते हें क्योंकि यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो बात वहीं रुक
जायेगी, वे आगे कैसे बढ़ेंगे ?
- वे अनुशासित और अनुशासनप्रिय होते हें – जो अनुशासित है उसका
व्यवहार pradictable होता है, उसके बारे में हर व्यक्ति यह कल्पना कर
सकता है कि अमुक बिषय या परिस्थिति में उसका व्यवहार कैसा होगा , निर्णय
क्या होगा. उसकी यही pradictavility उसे विश्वसनीय बनाती है, जीवन में
महान काम करने के लिए हमें अधिकतम लोगों का विश्वास जीतना अत्यंत आवश्यक
है.
- वे कठोर मगर सम्बेदनशील होते हें – महान लोग कठोर होते हें या यूं
कहिये कि कठोर दिखाई देते हें क्योंकि वे कठोरता से आचारसंहिता का पालन
करते हें. ऐसा किये बिना सफलता की कल्पना भी नहीं की जा सकती है, किन्तु
उनकी यह कठोरता उनकी सम्बेदनशीलता की विरोधी नहीं है. वे अत्यंत
संवेदनशील भी होते हें व हर व्यक्ति, घटना और परिवर्तन पर तीक्ष्ण निगाह
रखते हें. किसी वस्तु की समीक्षा करते वक्त वे मानवीयता के पहलू की
अनदेखी नहीं करते हें.
- वे समय का सदुपयोग करते हें - सभी के पास दिन में २४ घंटे ही होते
हें, किसी के पास न तो एक मिनिट कम और न ही इक मिनिट अधिक और यह बात तो
तय है कि २४ घंटों में वे २४ घंटे बीत ही जाने हें, कोई उन्हें सहेजकर रख
नहीं सकता है कि फिर कभी जरूरत पड़ने पर काम आयेंगे. अब यह हम पर निर्भर
करता है कि वे २४ घंटे हम किस प्रकार व्यतीत करते हें, व्यसनों में पड़कर
या सोकर बर्बाद कर देते हें या अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते हें. महान लोग
अपने समय का सम्पूर्ण उपयोग करते हें, वे यह जानते हें कि किस कार्य को
कितना समय दिया जाए.
- वे सही समय पर योग्य कार्य करते हें – सामान्य लोग बिना देशकाल का
विचार किये कभी भी, कहीं भी, कुछ भी काम प्रारम्भ कर देते हें, इस तरह
देश-काल के विपरीत होने उन्हें उनके कार्य में वांक्षित सफलता नहीं मिलती
है, महान लोग समय को पहिचानते हें, सही वक्त पर योग्य कार्य करते हें,
अपने समय का सम्पूर्ण और सही उपयोग करते हें और उचित समय पर योग्य विधि
से सही दिशा में किये गए प्रयत्न तो फलदायी होते ही हें. जैसेकि योग्य
ऋतु में, योग्य भूमि पर, सही विधि से खेती करने पर योग्यतम और अधिकतम
फलों की प्राप्ति होती है.
- वे छोटी-छोटी बातों में वक्त बर्बाद नहीं करते – जहां एक और
सामान्यजन छोटी-छोटी बातों में ही उलझा रहता है वहीं महान लोग प्रयोजनभूत
मामलों में ख्याल तो छोटी से छोटी बात का भी रखते हें, उस छोटी से छोटी
बात को भी अनदेखा नहीं करते जो सफलता के लिए आवश्यक हो, पर छोटी बातों
में उलझते नहीं, उलझे नहीं रहते, उन्हें सुलझाकर आगे बढ़ जाते हें.
- वे समय के पाबंद होते हें – कहते हें कि “ जो समय की कद्र करता है ,
समय उसकी कद्र करता है “ स्वाभाविक ही ही कि जो समय की परवाह न करे समय
कैसे उसकी परवाह करेगा. सामान्य लोग समय की इस तासीर को नहीं पहिचानते
हें इसलिए बे नाचीज ही बने रहते हें. जो समय का पाबंद नहीं वह बहुत कुछ
ही नहीं, अधिकतम मौकों पर सबकुछ खो देता है. यदि आप ट्रेन छूट जाने के एक
मिनिट, सिर्फ एक मिनिट बाद पहुँचते हें तो आप कितना खोएंगे ? सिर्फ कुछ
ही ?
नहीं आप सब कुछ खो देते हें क्योंकि आपका लक्ष्य था उस ट्रेन में यात्रा
करना और अब आप उसमें यात्रा नहीं कर पायेंगे.
कोई जादू नहीं, कोई भी कार्य अपने तरीके से ही होता है, उसमें निर्धारित
समय और शक्ति लगती ही है, उसमें सफलता या असफलता की संभावनाएं बनी ही
रहती हें.
इस नियम का कोई भी अपवाद नहीं है.
जिन लोगों को कहीं चमत्कार
वे लोग जिनकी उपलब्धियाँ महान हैं, सामान्यजन ही होते हैं और सफलता और
असफलता की समस्त खुली सम्भावनाओं के बीच, बड़ी सूझबूझ के साथ कठोर श्रम
करते हैं, स्वाभाविक ही है कि उनकी उपलब्धियाँ महान हों और लोग उन्हें
चमत्कारी पुरुष मान बैठें और फिर उनसे अपने-अपने पक्ष में चमत्कारों की
आशा करने लगें, पर उन्हें निराशा ही हाथ लगती है क्योंकि चमत्कार या जादू
तो सिर्फ एक ही है और वह है सुनिश्चित लक्ष्य, उत्तम कार्य योजना, पक्का
इरादा और कड़ी मेहनत और इन सबके साथ जोखम उठाने की तैयारी.
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