- परमात्म नीति (5)
- मात्र स्वामीपुत्र होने से कोई स्वामी नहीं होजाता !
- दास व्रत्ति से कार्य करने वाला स्वामी पुत्र भी दास बनकर ही रह जाता है कभी स्वामी नहीं बन पाता है.
स्वामी बुद्धी से काम करने वाला सेवक भी स्वामी बन जाता है क्योंकि जिसकी वृत्ति में दासता नहीं भला उसे कौन दास बना सकता है.
वृत्ति
में हो दासता यदि, कोई क्यों उसे स्वामी कहे
स्वामीपना
यदि वृत्ति में हो,कैसे कौन माने भ्रत्य रे
घोषणा
यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.
यह क्रम जारी रहेगा.
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