Sunday, August 27, 2023

लिखनी है - कविता - अब सन्ध्या को नमन करूं या नवप्रभात के गीत सुनाऊं खिलूँ जलज सा भोर मानकर या सांझ समझकर कुमलाऊं

यह जीवन इक बहती धारा


अब सन्ध्या को नमन करूं या 
नवप्रभात के गीत सुनाऊं 
खिलूँ जलज सा भोर मानकर 
या सांझ समझकर कुमलाऊं

अभी अभी तो बीता था यह 
जन्मदिवस फिर से आया है 


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