Thursday, December 6, 2012

"क्या हम सचमुच मानवीय गुणों के धारी मानव हें ? "

"क्या हम सचमुच मानवीय गुणों के धारी मानव हें ? "
--इस सारी प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि देश , समाज , परिजनों और स्वयं अपने रुख में यह सुधार हमें अपनी नहीं अन्यों की शर्तों पर करना है क्योंकि अभी तो हम सहमत हुए हें की यह सब होना चाहिए , यह जरूरी है , अभी अन्यों को अपने से सहमत करना बाकी है , यदि वे आपसे सहमत ही नहीं तो सहयोग क्यों और कैसे करेंगे ? अरे ! और तो और ; स्वयं वह व्यक्ति जिसके उत्थान के लिए आप काम कर रहे हें वही आपका बिरोध करेगा (क्योंकि वह तो कुबुद्ध

ी का धारक है न , वह यह समझने में सक्षम नहीं है की यह उसीके हित की बात है , जब साधू उस तपते रेगिस्तान में झुलस रहे विच्चू को हथेली पर उठाता है तो बिच्छू यह नहीं समझ पाटा है की वह उसकी मदद कर रहा है और बिच्छू उसे अपना अहितकारी मानकर डंक मार देता है , पर साधू पुरुष तब भी अपने कर्तव्य से च्युत नहीं होते हें ) और आपको तब भी यह करना है , जिस प्रकार मान अपने बीमार पुत्र को जब दवा देने का प्रयास करती है तो वह उसका भरपूर प्रतिरोध करता है, चीखता है , चिल्लाता है , तब भी मां रुक नहीं जाती है , अपना पुरुषार्थ छोड़ नहीं देती है ."
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