Friday, January 2, 2015

हम किसी के व्यवहार से आहत होते हें या किसी को आहत करने वाला व्यवहार करते हें, इन दोनों ही के पीछे कारण एक ही है, वह है हमारा अविचार.

हमारे दुर्व्यवहार का एकमात्र कारण है हमारा अपना अविचार -
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

हम किसी के व्यवहार से आहत होते हें या किसी को आहत करने वाला व्यवहार करते हें, इन दोनों ही के पीछे कारण एक ही है, वह है हमारा अविचार. यदि हम सामने वाले के स्वभाव और व्यक्तित्व से परिचित हों और हमें उन परिस्थितियों और सन्दर्भों की भी सही जानकारी हो जिनमें उक्त व्यवहार किया गया, तो न तो हम किसी के व्यवहार से आहत ही होंगे और न ही प्रत्युत्तर में उसे आहत करने वाला व्यवहार करेंगे. 
होता यह है कि जीवन में घटनाक्रम इतनी तेजी से घटित होते हें कि प्रत्येक सन्दर्भ में हमें इतनी गहराई में जाने का अवकाश ही नहीं होता है और तत्कालीन आवेश में बिना सन्दर्भों की समीक्षा किये हुए ही अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त कर देते हें, बस यहीं से अनर्थ की शुरुवात होती है.
हालांकि यह सत्य है कि अपने प्रत्येक व्यवहार में इतनी अधिक सावधानी वर्तना संभव ही नहीं है पर उन लोगों के साथ, जो हमारे लिए अंत्यंत महत्वपूर्ण हें, अपने व्यवहार में हमें यह सावधानी रखनी ही चाहिए अन्यथा हमारे सामने उन्हें खो देने का खतरा हमेशा ही बना रहेगा.
एक और उपाय है कि हम अपने स्वभाव और व्यवहार की शैली को (अपने व्यक्तित्व को) ही इस प्रकार ढाललें कि अनायास ही अवांक्षित प्रतिक्रियाएं करने से बचें.

जब हमें किसी व्यक्ति के किसी व्यवहार के प्रति कोई शिकायत पैदा हो तो हमें एक बार उन सन्दर्भों (परिस्थितियों) की समीक्षा कर लेनी चाहिए जिनमें वह व्यवहार किया गया, मैं मानता हूँ कि ऐसा करने पर हम स्वयं समझ जायेंगे कि सामने वाले का वह व्यवहार किन परिस्थितियों से प्रेरित था और सचमुच उन परिस्थितियों में तो उसका वह व्यवहार उपयुक्त ही था. उक्त परिस्थिति में इसके अलावा इससे बेहतर और कुछ किया ही नहीं जा सकता था, इस प्रकार स्वत: ही हमारी शिकायत दूर हो जायेगी.
एक और उपाय है, जब हमें किसी व्यक्ति का हमारे प्रति व्यवहार आहत करे तो हम अपने स्थान पर उसे खड़ा करके हम स्वयं उसके स्थान पर खड़े होकर देखें, एक दूसरे का व्यवहार आपस में बदल लें, हम पायेंगे कि अपने अपने स्थान पर, अपनी अपनी परिस्थिति में हम दोनोंके पास ही किये गए व्यवहार के अलावा अन्य विकल्प ही नहीं थे, तब शिकवे और शिकायत कैसी ?
हम जो भी व्यवहार करते हें या किसी के किसी व्यवहार के प्रत्युत्तर में कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करते हें वह दो तथ्यों पर निर्भर करती है –
हमारे स्वभाव पर और तत्कालीन परिस्थितियों पर , सामान परिस्थितियों में विभिन्न स्वभाव ले लोग विभिन्न प्रतिक्रियाएं व्यक्त करते हें और एक ही व्यक्ति अपने उसी स्वभाव के रहते हुए भी विभिन्न परिस्थितियों में अलग-अलग प्रतिक्रया व्यक्त का सकता है, इसलिए हमें किसी भी व्यवहार का अनुशीलन करते वक्त सामने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व (स्वभाव) पर भी विचार करना चाहिए. इस प्रकार के विचार से हम इस इस बात से संतुष्ट हो सकते हें कि हालांकि उसका व्यवहार उचित तो नहीं है पर इसके पीछे उसकी व्यक्तिगत रूप से हमारे प्रति कोई दुर्भावना नहीं है, यह तो उसके स्वभाव की विकृति है जिसके सामने वह स्वयं भी मजबूर है, तब हमें उसके प्रति सहानुभूति तो हो सकती है पर क्रोध नहीं.
सबसे अधिक महत्वपूर्ण एक बात और है – यदि व्यक्ति भी भला है और उसका स्वभाव भी उत्तम है तथा परिस्थितियाँ भी अनुकूल हें तब भी हमारे प्रति सामने वाला गुस्ताखी कर ही बैठता है तो कहीं ऐसा तो नहीं है कि हमारा ही दुर्भाग्य सामने वाले से यह सब करबा रहा है .
उपरोक्त में से यदि कोई भी बात सही न हो तब भी एक बात तो निश्चित है कि यदि आप गुस्से या व्याथित होने से पूर्व जितने समय में उपरोक्त पूरी प्रक्रिया से गुजरेंगे तो आपका गुस्सा गायब ही हो चुका होगा क्योंकि यह सारी प्रक्रिया ज्ञान से संचालित होती है और जब ज्ञान का उदय होता है तो क्रोध और नफरत वहां टिक ही नहीं पाती है.

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