Sunday, October 30, 2011

जीवन को जियो पर मृत्यु से डर कैसा ?

जीवन को जियो पर मृत्यु से डर कैसा ?

हम जीवन से प्यार करते हें पर उसे यूं ही बर्बाद करते हें .
हम मौत से डरते हें पर चाहे -अनचाहे ही निरंतर उस ओर बढ़ते हें .
जीवन जीने के लिए है पर उस पर मरने की क्या आवश्यकता है ?
हम इस जीवन में आये हें यह हमारा घर नहीं परदेश है .
हम किसी भी काम के लिए परदेश जाते हें तो काम निपटा कर तुरंत बहाँ से लौट आते हें, वहां रुकते नहीं , टिकते नहीं कयोंकि वह मेरा देश  नहीं है , वहां मेरा घर नहीं है , वहां मुझे विश्राम नहीं मिलता है , विश्राम घर में मिलता है .
जिनका इरादा परदेश जाकर वहां बसने का होता है उसे बहाँ जाने की अनुमति भी नहीं मिलती .
यदि यह मानव जीवन पाकर तू यही अमर होना चाहेगा तो तू रुक तो न सकेगा पर पुन: यहीं आने की अनुमति भी न मिलेगी .
यहाँ तो तू अपना काम कर , अपना काम करले .
ना जाने की चाह कर और न ही रुकने की परवाह .
तुझे यहाँ जितने दिन के प्रवास की अनुमति मिली है वह पर्याप्त है .
यूं भी तू समय की कमी की शिकायत तब कर सकता है जब तू प्राप्त समय का पूरा सदुपयोग करता हो पर प्राप्त समय को तो तू व्यर्थ नष्ट करता रहता है , तब तुझे Extension क्यों चाहिए ?
जीवन  में खेलना - खाना आवश्यक है पर यह जीवन मात्र खेलने खाने के लिए नहीं है , अपना कल्याण करने के लिए है , अपने आपको पहिचानने के लिए है .
यह काम तो कुछ ही बर्षों , महीनों , दिनों और पलों में किया जा सकता है और फिर तू मुक्त है , चाहे "लाख बर्षों तक जीउँ या म्रत्यु आज ही आ जाबे "
यदि तू अपना काम करता ही नहीं तो जीने का प्रयोजन भी क्या है , जितने दिन जियेगा समय नष्ट ही करेगा और यदि व्यर्त और अनर्थ के कामों में समय बिताएगा तो अपना संसार और बढ़ाएगा .
ज़रा अपने मन को टटोल तो ! तू जीना किसके लिए चाहता है ?
अपने लिए या औरों के लिए ?
यदि औरों के लिए ? तो यह तेरा भ्रम है क़ि उन्हें तेरी जरूरत है और वे तेरे बिना रह ही ना पाएंगे .
(इसके सम्पूर्ण  व रोचक विश्लेषण के किये लेखक की कृति "क्या म्रत्यु अभिशाप है ? " पढनी चाहिए )
यदि अपने लिए ? तो वह करता क्यों नहीं जो करना चाहिए .
क्या हो जाएगा यदि कुछ दिन और जीने को मिल जाएगा ?
जिस तरह ये दिन बीते हें उसी तरह और भी बीत जायेंगे .
यदि तुझे डर है क़ि तेरे बाद प्रियजनों का क्या होगा तो बे तो इसके लिए तैयार ही हें , उन्हें तो पता ही है क़ि इक दिन तो यह होना ही है .और यदि तुझे स्वयं ही डर लगता है तो तुझे तो पता ही न लगेगा क़ि क्या हुआ ?
इसलिए जीवन को जानिये , पहिचानिए और सफल बनाइये .

-परमात्मप्रकाश भारिल्ल 

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