हमारी आज की समस्याएं हमारे अपने , आज के ही परिणामों (मन की वृत्ति) और विचारों का परिणाम (result) हें .
अपनी समस्याओं की जड़ अपने किन्ही पूर्व कृत कर्मों में या दूसरे पक्ष की गलतियों या कारगुजारियों में खोजने की वृत्ति अपनी समस्याओं को ज्यों की त्यों बनाए रखने का और सुलझने नहीं देने का कारण है .
मैं यह नहीं कहना चाहता हूँ क़ि इनमें अपने पूर्व कृत कर्मों का कोई योगदान है ही नहीं पर अब अपनी वृत्ति और नीति में परिवर्तन करके स्थिति को सुधारा जा सकता है .
यह सोचना भी क़ि "मेरे आज के कृत्यों का फल मुझे कल भोगना पडेगा " पूरी तरह सही नहीं है , हाँ कल तो भोगना ही होगा पर आज भी हम उन दुष्परिणामों से बच नहीं सकते हें .
भूतकाल बीत चुका है और उसमें कुछ किया नहीं जा सकता है और भविष्य अभी आया नहीं है , इसलिए हमें जो करना है वह वर्तमान में करना है . अभी जो वर्तमान है वह कल (कल ही क्यों ,एक समय बाद ही) भूत हो जाएगा और इसलिए यदि अभे अपने वर्तमान को ठीक करलें तो समय के साथ हमारा भूत भी उज्जवल हो जाएगा और इसी तरह उज्जवल भविष्य की मजबूत आधारशिला भी तैयार हो जायेगी .
यदि हम आज आग में हाथ डालते हें तो आज ही जलते हें , हाँ वह जलन एक लम्बे भविष्य तक भी हमें परेशान करती रहेगी , यह बात अलग है .
इसी तरह यदि हम कभी भूतकाल में जल गए थे और उसके घाव हमें अभी भी परेशान करते हें तो उनका उपचार आज ही करना होगा ,जब जले थे उस दिन को याद करके रोने से काम नहीं चलेगा .
हम अपनी वर्तमान तकलीफों की जड़ भूतकाल में और वर्तमान क्रत्यों का निष्कर्ष भविष्य में देखते हें तो हम अपने वर्तमान आचरण के प्रति लापरवाह हो जाते हें .
हमें अपनी यह धारणा बदलनी होगी .
यह विचार क़ि " इन भावों का फल क्या होगा " मामले को भविष्य की ओर धकेलता है और भविष्य का हमें भरोसा नहीं है . एक तो हमें यह भरोसा नहीं है क़ि इस जीवन के बाद भी हमारा कोई भविष्य है और दूसरा हमें यह भी भरोसा नहीं है क़ि सचमुच हमें अपने कृत्यों का परिणाम भोगना ही होगा , और दोनों ही बातें हमें वर्तमान मैं कोई भी कुकृत्य करने से रोक नहीं पातीं हें .
हमें इस विचार को इस तरह से बदलना है क़ि " इन भावों का फल क्या है " , तब यदि तत्काल ही बुरे परिणाम भोगने से बचना है तो हम कुकृत्य करने से भे बचने की कोशिश करेंगे .
No comments:
Post a Comment