नश्वर/चंचल भोग सामग्री एवं असहाय, असंत्रप्त उपभोक्ता -
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
"---------------------------जिन चन्द लोगों ने भोगा है मात्र वे ही जानते हें कि कितना आनंद है इनमें, कैसा आनंद है इनमें ?
क्या हम उन्हें जानते नहीं हें, हम उनके आनंद को न जानते हों पर हम उन्हें बहुत अच्छी तरह से जानते हें.
हम जानते हें क़ि कितने असहाय, कमजोर और असुरक्षित हें वे?
शरीर से जर्जर और मन से तार तार.
टूटा हुआ शरीर और बिखरा हुआ मन.
न अपने बालों पर उनकी चलती है और न ही बालकों पर.
न चाहते हुए भी सारे बाल उड़ गए, और सारे बालक भी, बिखर गए सारी दुनिया में,पास कोई न रहा.
सर पर अब गिनती के चार बाल बचे हें पर ये हें क़ि दिन भर उन्हीं में उलझे रहते हें, कभी रंगने में कभी संबारने में.
कड़क, कलफदार, झकाझक सफ़ेद कपड़ों में लिपटी यह काली, कृष, भग्न काया, बस ऐसा लगता है मानो छछूंदर की खोपड़ी में चमेली का तेल.
जो खाता है वह चबा नहीं सकता, जो चबाने की जरूरत नहीं वह पचा नहीं सकता, जो पचता है वह खाया नहीं जाता.
यह खाना चाहता है भोगने के लिए (स्वाद के लिए ), जीने के लिए नहीं.
भोग इन्द्रियों के माध्यम से भोगे जाते हें पर अब इन्द्रियाँ शिथिल होगई हें, साथ नहीं देतीं हें और भोग की इक्षा प्रबल हो गई है.
(नई कृति का एक हिस्सा)



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