Friday, November 18, 2011

यह सब प्रपंच आखिर किस लिए हें ? क्या जीवन के लिए ? नहीं ! जीवन के लिए तो इन सब की आवश्यकता ही कहाँ है ? जीवन इतना कठिन नहीं है , जीवन की आवश्यकताएं तो अत्यंत सीमित हें .

मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि यह सब प्रपंच आखिर किस लिए हें ? क्या जीवन के लिए ? 
नहीं ! जीवन के लिए तो इन सब की आवश्यकता ही कहाँ है ? 
जीवन इतना कठिन नहीं है , जीवन की आवश्यकताएं तो अत्यंत सीमित हें .
अरे ! हमने इस सादे से जीवन को कितना जटिल बना दिया है ?
हमने कितने आबिष्कार कर लिए हें ?
जब ये सब न थे तब क्या जीवन ही नहीं था ?
अब भी यह सब क्या सबको उपलब्ध है ? नहीं न !
तो क्या बे जीते नहीं हें
अरे ! ज्यादातर लोग जीते तो इन सब के बगैर ही हें , सबको यह सब उपलब्ध ही कहाँ है ?
पर बे इनको पाने के सपने देखते रहते हें और इन सपनों के पीछे ही दौड़ते रहते हें .
क्या ये सारे स्वप्न परीकथाओं जैसे नहीं हें ?
हममें से अधिकतम लोगों ने जगत के वैभव की मात्र कथाएं ही सुनीं हें , कुछ देखा नहीं है .
किन्हीं लोगों ने यदि दूर से देखा भी है तो भोगा नहीं है , मात्र कल्पना की है , मन ललचाया है .
न तो पा सके हें अब तक और न ही कभी पा सकेंगे , तब आखिर मात्र सपनों के पीछे ही कब तक दौढ़ते रहेंगे ?

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