पुण्योदय भला या पापोदय ?
एक बहुत ही कठिन सबाल है
आइये देखें ! क्या क्या होता है पुण्योदय तथा पापोदय में ?
और भला कौन है -
अहो इसे वरदान कहूं या , अभिशाप जगत में पुण्य उदय
यह पुष्ट अहम् को करता है , करता वैराग्य व्रत्ति का क्षय
कर्तृत्व पुष्ट हुआ करता नित , इसकी शीतल छाया में
नित अपनत्व बड़ा करता , कंचन सी कोमल काया में
अरे जगत में अनुकूलन पा , मैं फिर इसमें रम जाता
हो जाता च्युत मैं मुक्तिपंथ से ,चौरासी में भ्रम जाता
पाप उदय की प्रतीकूलता ,यूं पर से विमुख किया करती
यह उडाती मोह नींद को , मुझको कुछ जाग्रत करती
नहीं नियंत्रित करता हूँ मैं , पर के नित परिवर्तन को
यह अहसास दिलाता है , पाप उदय नित जन-जन को
यह पुष्ट अहम् को करता है , करता वैराग्य व्रत्ति का क्षय
कर्तृत्व पुष्ट हुआ करता नित , इसकी शीतल छाया में
नित अपनत्व बड़ा करता , कंचन सी कोमल काया में
अरे जगत में अनुकूलन पा , मैं फिर इसमें रम जाता
हो जाता च्युत मैं मुक्तिपंथ से ,चौरासी में भ्रम जाता
पाप उदय की प्रतीकूलता ,यूं पर से विमुख किया करती
यह उडाती मोह नींद को , मुझको कुछ जाग्रत करती
नहीं नियंत्रित करता हूँ मैं , पर के नित परिवर्तन को
यह अहसास दिलाता है , पाप उदय नित जन-जन को
पुन्य का उदय या पाप का उदय , दोनों ही संसार हेँ इसलिए दोनों ही सामान हेँ .
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