कहिये क्या करना है ? क्या निर्णय है आपका ? क्या आपको अपने आप पर भी दया नहीं आती है ?
जिस प्रकार वे देश विकास नहीं कर पाते हें जिनका पूरा बजट ही मेंटेनेंस , प्रशासनिक कामों और रक्षा में खर्च हो जाता है.
विकास के काम करने के लिए कुछ बचता ही नहीं .
यह भी सच है क़ि जो भी कलेक्शन होगा वह पहिले इन ही कामों में खर्च होगा , इनके अतिरिक्त जो आएगा वही विकास में खर्च हो सकेगा .
सच तो यह भी है क़ि कलेक्शन तो जो होना है वही होगा , तब क्या करें ?
जो भी कलेक्शन हुआ है उसे व्यवस्थित रूपसे नियोजित करें, उक्त मदों से कुछ तो बचाएं ताकि विकास हो सके.
यह तो तय है क़ि यह राशि कुल कलेक्शन का बहुत कम परसेंटेज होगी पर सार्थक सिर्फ यह़ी है ,बाकी सब कुछ इसके लिए है .
यदि हम इतना भी कर पाए तो थोडा -थोडा करके एक दिन हम बहुत आगे निकल ही जायेंगे .
हमारा देश भारत इसका जीवंत उदहारण है .
शायद आप जानते ही होंगे क़ि हम अपने (लम्बी अवधि के )लोन की जो EMI चुकाते हें ,शुरुआत की किस्तों का तो अधिकतम भाग मात्र व्याज के रूप में ही जमा हो जाता है मूल में तो बहुत कम जाता है.
यदि हम २००००/- की EMI चुका रहे हें तो १८०००/- तो व्याज के रूप में ही जा रहा है , तब भी धीरे -धीरे मूल कर्ज कम होते होते एक दिन वह पूरा चुक ही जाता है ,२०-२५ साल में ही सही .
यानिकि यदि आज एक छोटी भी शुरुवात हम करते हें तो एक दिन उसका बहुत बड़ा फल ( परिणाम) सामने आता है.
तब फिर आपका क्या विचार है ?
हमने अपने जीवन में और कुछ भी पा लिया हो -
और कुछ नहीं तो उम्र तो पा ही ली है .
संतति भी पा ली होगी. (यह तो पशुओं को भी मिल ही जाता है )
पर हम आत्म विकास के क्षेत्र में कितना आगे बढे ?
ज्यादातर लोगों ने तो शुरुवात ही नहीं की होगी .
तो फिर सब कुछ व्यर्थ है .
दिन के २४ घंटों में से बहुतायत समय तो हमारे मेंटेनेंस में ही खप जाता है ,पर यदि २४ घन्टों में से कुछ ही पल भी हम इस काम ( आत्मोत्थान ) के लिए निकाल पाए तो सच मानिये हम इसी जीवन में परमात्मा बन सकते हें .
निर्णय आपके हाथ में है .
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल]
No comments:
Post a Comment