यदि रातों का आना तय है तो दिन का आना भी तो लाजमी है .
(यहाँ रात का मतलब बुरा समय और दिन या रोशनी को अच्छा समय समझ कर पढ़ें )
रातें तो आती हें ,वे तो आयेंगी ही .
भला उन्हें कौन रोक सका है ?
परिवर्तन जीवन का क्रम है ,परिवर्तन को रोका नहीं जा सकता है.
पर इसी परिवर्तन स्वभाव में हमारा सौभाग्य छुपा हुआ है
जब अच्छा समय बुरे में बदल सकता है तो भी बुरा समय अच्छे में क्यों नहीं ?
यदि रातों का आना तय है तो दिन का आना भी तो लाजमी है .
जब रातों को रोका नहीं जा सकता तो बैठकर उनको कोसने से भी कोई फायदा नहीं है .
पर हर रात के बाद एक स्वर्णिम प्रभात का आना भी तय है
बशर्ते -
रात के दौरान हम अपना अस्तित्व बनाये रखने में सफल रहें .
और फिर कोई हर रात कातिल नहीं होती .
हाँ अगर रात हाहाकार में बितादी तो आने वाला प्रभात भी बोझिल ही रहेगा .
अगर रातों का उपयोग शक्ति के संचय में किया जाये, अपने आपको विश्राम दिया जाये तो आने वाला सूरज हमारे जीवन में क्रांति ला सकता है .
और फिर हमें हर वक्त ही अपने ऊपर एक तपते हुए सूरज की आवश्यकता भी तो नहीं है.
दिन में कुछ ही समय के लिए मिली रोशनी हमारे सारे दिन को रोशन कर देने की क्षमता रखती है.
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल
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