Wednesday, November 30, 2011

जरा विचार तो कर ,यह आनंद है या अभिशाप


जरा विचार तो कर ,यह आनंद है या अभिशाप
  
मधुमेह (diavities)  का रोगी निरंतर मिठाई खाने से उपजे तथाकथित आनंद की कल्पना में ही मगन रहता है और इसलिए उसे मिठाई खाने की तीव्र इक्षा बनी रहती है , यदि इसके विपरीत वह मिठाई खाने से मधुमेह (diavities ) के कारण उत्पन्न होने बाली भयंकर विपत्तियों का चिंतन करे तो उसे कभी भी मिठाई खाने की इक्षा ही नहीं होगी .
इसी प्रकार संसारी जीव भोगों के उपभोग से मिलने बाले तथाकथित आनंद की कल्पना में ही मगन रहता है ,उन्हीं के स्वप्न देखता है और इसीलिये उसको   निरंतर भोगों की इक्षा वलवती होती रहती है.
सच तो यह है क़ि कभी किसी को संसार में सुख तो मिला ही नहीं ,अनेकों किन्तु -परन्तु  और अगर - मगर के साथ मिले क्षणिक सुखाभास के सहारे ही यह अज्ञानी इन भोगों में सुखों की कल्पना करता रहा .
यदि प्रत्येक सुखाभास के बारे में गहराई से विचार करके यह जीव  यदि इस सही निष्कर्ष पर पहुँच जावे क़ि संसार में और भोगों में किंचित मात्र भी सुख नहीं है तो इसे भोगों की चाह ही नहीं रहेगी .
कुत्ता यदि इस सच्चाई को जान ले क़ि हड्डी चबाने से आने बाला स्वाद का आनंद दरअसल हड्डी में से नहीं वल्कि हड्डी चबाने से चोटिल हुए जबड़े से निकलने बाले स्वयं के खून में से आ रहा है तो उसे हड्डी चबाने की चाहत ही नहीं रहेगी .

-परमात्म प्रकाश भारिल्ल

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