Saturday, December 3, 2011

क्या आत्मा अमर है ?क्या इस जीवन के बाद भी आत्मा यानि क़ि मैं बना रहूँगा ?क्या पुनर्जन्म होता है ?


क्या आत्मा अमर है ?क्या इस जीवन के बाद भी आत्मा यानि क़ि मैं बना रहूँगा ?क्या पुनर्जन्म होता है ?


क्या यहकभी नष्ट नहीं होगा ?
क्या इस जीवन के बाद भी आत्मा यानि क़ि मैं बना रहूँगा ?
क्या मैं फिर से देह धारण करूंगा ?
क्या पुनर्जन्म होता है ?
चिंतकों को यह सवाल परेशान किये रहते हें .
हालाँकि इन सभी सवालों का सम्बन्ध हम  सभी से भी है , पर हम इन सवालों को टालते रहते हें ,इनकी तह में जाने का प्रयास ही नहीं करते .
टालने के पीछे की भी मानसिकता यह  है क़ि आखिर  हमारे पास इसकी सत्यता परखने का साधन ही क्या है ?
यूं तो धर्म ग्रंथों में लिखा है ,क्या यह़ी काफी नहीं ?
फिर भी हमें तर्क चाहिए ,प्रमाण चाहिए .
ठीक है .
एक बार यह़ी मानलें क़ि हमारे पास यह सवित करने के लिए कोई तर्क या प्रमाण नहीं हें क़ि यह आत्मा अमर है ,यहकभी नष्ट नहीं होगा .
पर इतने मात्र से यह तो साबित नहीं हो जाता है ना क़ि आत्मा अमर नहीं है और पुनर्जन्म नाम की कोई वस्तु नहीं है .
तब आप इस तरह का व्यवहार क्यों प्रारंभ करदेते हें ?
यदि हम तर्क पर भी चलें तो, कुछ लोग कहते हें क़ि आत्मा अजर-अमर है ,कभी नष्ट नहीं होता , कभी मरता नहीं और कुछ लोग कहते हें क़ि आत्मा नश्वर है, इन दोनों बातों की सत्यता की सम्भावना ५०-५० प्रतिशत तो माननी ही होगी ना?
तब फिर हम इस तरह से व्यव्हार क्यों करने लगते हें मानों पुनर्जन्म होता ही नहीं .
हमें अपने इस जीवन की ही तरह पुनर्जन्म की भी तैयारी करनी ही चाहिए ना ?
बस यह़ी तो है समस्या की मूल जड़ .
जब हम बालक या जवान होते हें तब हमें अपना यह जीवन तो अपने सामने बिखरा सा पड़ा दिखाई देता है ,जीता - जगता . और पुनर्जन्म एक कल्पना लोक की चीज लगती है .
ऐसे में जब हम इसी जन्म की चुनौतियों से जूझने में व्यस्त होते हें तब उस तथाकथित कल्पना लोक के पुनर्जन्म की कौन परवाह करे ?
पर भाई मात्र वेपर्वाही से हकीकत तो बादल नहीं जाती ना ?
तब हमें हकीकत को स्वीकार करके उसका सामना करने की तैयारी करनी चाहिए .
अब हम एक तथ्य पर गौर करें -
वाल्यावस्था या जबानी में  हमें हमारे सामने अपना एक लम्बा सा यह जीवन पसरा सा दिखाई देता है (हालाँकि इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है ) , परन्तु अपना यह जीवन पूरी तरह जी लेने के बाद जब हम यहाँ किसी भी काम के नहीं रहते और मात्र जीवन के दिन गिनते हुए म्रत्यु का ही इंतजार करते रहते हें तब हमें यह पुनर्जन्म का सिद्धांत आकर्षित करने लगता है ,अब हमें यह अच्छा और सच्चा लगने लगता है , क्योंकि अब तो इसी में हमारा हित है .
अब यह जीवन तो व्यतीत हो ही चुका है , अबतो यदि पुनर्जन्म होगा तो ही मैं रहूँगा और यदि पुनर्जन्म नहीं होगा तो मैं नष्ट हो जाऊंगा .
अब हमें यह दूसरी सम्भावना आकर्षित करने लगती है ,
पहिले पहिली सम्भावना के अनुसार व्यवहार कर्ता था अब दूसरी सम्भावना के अनुसार व्यबहार करने की कोशिश करता है.
पर अब करने को शेष रहा ही क्या है ? अब कर ही के सकता है ? अब न तो समय ही बचा है और ना ही शक्ति .
अब आगे न तो १० २० बर्ष हाथ में हें और ना ही शरीर और इन्द्रियां काम करतीं हें , आँखों से दिखता नहीं है, कानों से सुनाई नहीं देता , पावों से चला नहीं जाता , न जागते बनता है और ना ही नींद आती है . आखिर अब करे तो क्या करे ? 
अब लगता है क़ि काश यदि यह बात मैं पहिले समझा होता तो मैंने पहिले ही यह काम भी कर लिया होता .
अब जिनके हाथ से बात निकल ही गई  उनका तो हम कर ही क्या सकते हें ,पर जिनके पास अभी भी समय है उन्हें बिना और समय गंबाये इस ओर ध्यान देना चाहिए .


परमात्म प्रकाश भारिल्ल

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