इस जगत में किसी का कुछ भी करना धरना किसी के हाथ में नहीं है , तब गिला-शिकवा कैसा ?
मेरी गत ६-७ पोस्टिंग्स का सार यह है क़ि किसी भी व्यक्ति के जिस भी कृत्य के लिए हम उसे दोषी ठहराकर उसके प्रति क्रोध या वैर का भाव धारण कर लेते हें ,सचमुच तो वह उस कृत्य का कर्ता है ही नहीं क्योंकि यदि कोई इश्वर या कोई अल्लाह या कोई गौड़ इस जगत का सञ्चालन कर्ता है तो जो भी कर्ता है वह कर्ता है ,हम कहाँ करते हें ,तब हम अपराधी कैसे हुए ?
यदि इश्वर नहीं कर्ता और जगत का सारा परिणमन स्वयं ही होता है तो भी हमने क्या किया ? फिर हम अपराधी क्यों ?
इस जगत में किसी का कुछ भी करना धरना किसी के हाथ में नहीं है , तब गिला-शिकवा कैसा ?
यदि हम इस तथ्य को समझ कर स्वीकार करलें तो कर्तापने की अनंत आकुलता समाप्त हो जायेगी .
इस तथ्य की स्वीकृति अनंत शांति प्रदान करती है और यह स्वीकार कर पाना ही सबसे बड़ा पुरुषार्थ है जो हमें करना है .
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