Monday, December 19, 2011

सही मार्ग खोजना ही सबसे बड़ा पुरुषार्थ है


सही मार्ग खोजना ही सबसे बड़ा पुरुषार्थ है , उस पर चल पढ़ना , मार्ग की बाधाओं को दूर करना और आगे बढना यह़ी सबसे बड़ा पुरुषार्थ है , यह वैचारिक पुरुषार्थ है , यह काम कहीं बाहर नहीं अपने अन्दर करना है , अपने आप में करना है , इसके लिए भाग दौड़ की नहीं अंतर में सिमटने की आवश्यकता है . 
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अबतक का जीवन गफलत में बीत गया , वर्तमान अवसाद में बीता जा रहा है और भविष्य लंबा है नहीं , ऐसे में तुरंत ही चल पड़ने के शिवाय कोई उपाय है नहीं तथापि मार्ग सूझता नहीं है . 

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