यह एक स्थापित तथ्य है क़ि यह दुनिया अपने हिसाब से चलती है , स्वयं संचालित है .
यदि इसमें भी कोई संशय या एतराज हो तो कमसे कम यह तो निर्विवाद सत्य है क़ि हमारे चलाये तो यह दुनिया चलती ही नहीं है , और जीवन के हर मोड़ पर , हर कदम पर इस सत्य की पुष्टी होती ही रहती है , तब फिर हम क्यों अपनी चौधराहट छोड़ने को तैयार नहीं हें ?
क्यों हम मैदान में डटे रहते हें , आकुलित व्याकुलित होते रहते हें ?
अरे ! यूं भी हम इतने पुण्यहीन हें क़ि हमारे अनुकूल कुछ भी होता ही नहीं है और फिर हमें स्पष्ट तौर पर सब कुछ दिखाई देता है क़ि दिन प्रतिदिन सब कुछ हमारे हाथ से फिसलता जाता है तब भी क्यों हम सत्य को स्वीकार करके निराकुल नहीं होना चाहते हें , इस सत्य के विरुद्ध अपने अंतिम दम तक लड़ना चाहते हें .
वस्तु का स्वरुप तो बदलने वाला है नहीं ,सिर्फ हम ही दुखी होते रहेंगे .
यदि सुखी होना है तो वस्तु स्थिति को स्वीकार करले
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