हमारा द्वैध व्यक्तित्व (double personality ) हमारी अशांति का सबसे बड़ा कारण है
हमारा संघर्ष किसी और से नहीं स्वयं अपने आप से ही है , हमारी शक्ति का सबसे अधिक अपव्यय स्वयं अपने आप से होने वाले संघर्ष में होता है , कहीं और नहीं .
दरअसल हमारे दो या अधिक व्यक्तित्व होते हें , एक तो वह जैसे क़ि हम हें और दूसरा , तीसरा , चौथा --------- वह ,जैसे हम दिखना चाहते हें .
हम हमेशा ही वह लबादा ओढ़े रहते हें जैसे हम दिखना चाहते हें , पर वह तो उपरी वस्तु है और सदा ही उस लबादे के अन्दर से हमारा असली व्यक्तित्व ताकाझांकी करता रहता है .यह क्रम लगातार जीवन भर ही चलता रहता है और हामारी अधिकतम शक्ति इन दो व्यक्तित्वों के बीच टकराव में व्यर्थ ही नष्ट होती रहती है .
यदि हमें अपनी इस शक्ति का रक्षण करना है तो हमें इस टकराव को टालना होगा और यह तभी होगा जब हम अन्दर और बाहर एक जैसे ही हों . हम वैसे ही दिखें भी जैसे हम हें या यूं कहिये क़ि हम सचमुच ही वैसे ही बन जाएँ जैसे हम दिखना चाहते हें .
No comments:
Post a Comment