मेरा चिंतन मात्र कहने-सुनने के लिए नहीं, आचरण के लिए, व्यवहार के लिए है और आदर्श भी. आदर्शों युक्त जीवन ही जीवन की सम्पूर्णता और सफलता है, स्व और पर के कल्याण के लिए. हाँ यह संभव है ! और मात्र यही करने योग्य है. यदि आदर्श को हम व्यवहार में नहीं लायेंगे तो हम आदर्श अवस्था प्राप्त कैसे करेंगे ? लोग गलत समझते हें जो कुछ कहा-सुना जाता है वह करना संभव नहीं, और जो किया जाता है वह कहने-सुनने लायक नहीं होता है. इस प्रकार लोग आधा-अधूरा जीवन जीते रहते हें, कभी भी पूर्णता को प्राप्त नहीं होते हें.
Thursday, May 17, 2012
Parmatm Prakash Bharill: ------हमें इन गुणों को मात्र अपने स्वभावगत गुण ही ...
Parmatm Prakash Bharill: ------हमें इन गुणों को मात्र अपने स्वभावगत गुण ही ...: सद्गुणों को मात्र स्वभाव न बने रहने दें उन्हें अपनी नीति बनालें हालांकि हमारे अन्दर विद्यमान गुण अधिकतर हमारी स्वभावगत विशेषताएं हुआ करती ...
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