Thursday, May 17, 2012

------हमें इन गुणों को मात्र अपने स्वभावगत गुण ही नहीं बने रहने देना चाहिए वल्कि इन्हें अपने नीतिगत गुण बना लेना चाहिए , क्योंकि स्वभावगत व्यवहार परिस्थितियों , मूड और वातावरण के अनुसार बदलता रहता है , बदलता रह सकता है ------------

सद्गुणों को मात्र स्वभाव न बने रहने दें उन्हें अपनी नीति बनालें 
हालांकि हमारे अन्दर विद्यमान गुण अधिकतर हमारी स्वभावगत विशेषताएं हुआ करती हें , कुछ संस्कारगत और कुछ सुशिक्षा का परिणाम .
मेरा तात्पर्य है  दयालुता , उदारता , विनम्रता , इमानदारी , न्यायप्रियता , सहिष्णुता , स्पष्ट्बादिता , म्रदुभाषिता , निष्कपटता , आपसी समझ , सकारात्मक सोच , ग्रथियों से रहित होना , सफाई , समय की पाबंदी , बात का धनी होना इत्यादि .

मेरा मानना है क़ि हमें इन गुणों को मात्र अपने स्वभावगत गुण ही नहीं बने रहने देना चाहिए वल्कि इन्हें अपने नीतिगत गुण बना लेना चाहिए , क्योंकि स्वभावगत व्यवहार परिस्थितियों , मूड और वातावरण के अनुसार बदलता रहता है , बदलता रह सकता है और हमें इन सद्गुणों के साथ कोई समझौता इष्ट नहीं है .हम नहीं चाहते हें क़ि हम कभी भी इनका त्याग करें या इनमें कोई समझौता करें , इसलिए हमें इन सद्गुणों को अपने जीवन की नीति बना लेना चाहिए . परिस्थितियाँ चाहे कैसी भी हों , हमारा मूढ़ चाहे कैसा भी हो हम अपनी नीति पर कायम रहें .
यूं भी स्वभाव और व्यक्तित्व किसी के अन्दर पूरी तरह प्रत्यारोपित नहीं किया जा सकता है पर नीतियाँ समझाई जा सकती हें , मनबाई जा सकती हें , उन्हें लागू किया जा सकता है , क्रियान्बित किया जा सकता है .

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