दिन प्रतिदिन के छोटे - छोटे व्यवहारों से प्रभावित होकर हम लोग अपने उन रिश्तों को ही दाव पर लगा देते जो हमारे जीवन की आधारशिला होते हें , क्या यह उचित है ???
----------------------------------------अहो ! तुमने ये क्या किया ?
भावनाओं के इस गहरे रिश्ते को व्यवहार की इस कमजोर सी तराजू पर तोल दिया .
यद्यपि ऐसा कुछ भी हुआ नहीं जैसा क़ि तुम्हें भ्रम हो गया है , पर आखिर मैं इसकी चर्चा ही क्यों करूं ?
यदि सचमुच ही ऐसा कुछ हो भी जाता तो कौनसा अनर्थ होजाता ?
यह तो उन अनेकों भूलों जैसी ही एक सामान्य सी भूल ही तो है जैसी भूलें हम प्रतिदिन - प्रतिपल ही कदम -कदम पर किया करते हें .
क्या ऐसी बातों से रिश्ते ही बदल जाते हें ? क्या ऐसी बातों से भावनाएं ही मर जातीं हें ?
अरे ! भावनाओं की जड़ें अत्यंत गहरी हुआ करतीं हें , भावनाओं के तंतु हमारी आत्मा को आत्मा से जोड़ते हें , समस्त आरोपित विकृतियों से रहित आत्मा से , समस्त आरोपित कथित रिश्तों से निरपेक्ष आत्मा से .
क्या आत्मा का आत्मा से बंधन इतना कमजोर होता है ?
क्या ये आत्मा का आत्मा से बंधन था या दुनिया का साधारण सा लेन-देन का व्यवहार था यह सब , जो कथित त्याग और वलिदान का स्वांग धारण करके मुझे भ्रमित किये हुए था .
कहाँ मैंने तो अपने आपको आपकी बाहों में समर्पित ही कर दिया था और कहाँ आप इन रिश्तों को दिन प्रतिदिन के छोटे - छोटे महत्वहीन व्यवहारों से ही तोलते रहे .-------------------
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