Saturday, March 30, 2013

निर्णय आपको करना है कि आपको जीवन भर अपने अकृत्य कथित दुष्क्रत्यों का दंड भोगते रहने के लिए अभिशप्त एक मजबूर और कलंकित जीवन जीने वाला व्यक्ति बनना है या एक शांत , गौरवमय जीवन जीने वाला व्यक्ति बनना है .

एक व्यक्ति अपने जीवन में सदा ही संकट में है और दूसरा सदा ही सुरक्षित , यह किस बात पर निर्भर करता है ?
आइये जानें -

जब किसी पर कोई आरोप लगता है तो दो तरह की स्थितियां उत्पन्न होती हें -
एक व्यक्ति वह होता है जो आरोप लगने मात्र से अपराधी मान लिया जाता है , अब उसे अपने आप को निरपराध साबित करने के लिए ( यद्यपि निरपराध हो तब भी ) अपनी सारी शक्ति और साधन झोंक देने पड़ते हें , अनेकों प्रमाण देने की जरूरत होती है .
यह सब करने के बाद भी यदि वह भाग्यशाली हो और निरपराध करार दे ही दिया जाबे तब भी दुनिया के लोग उसे निरपराध नहीं मानना चाहते हें और यही कहते पाए जाते हें कि "बो तो बच गया , कोई सबूत नहीं मिला इसलिए ".
दूसरा वह व्यक्ति होता है जिसके ऊपर कोई भी आरोप क्यों न लगे , कोई उसे अपराधी मानता ही नहीं है , कोई उसे अपराधी मानना ही नहीं चाहता है , कोई उसे अपराधी मान ही नहीं सकता है .
यदि वह सचमुच ही अपराधी है और उसका अपराध साबित भी हो जाता है तब भी लोग यही कहते पाए जाते हें कि उसे तो फंसा दिया गया है , वह ऐसा कर ही नहीं सकता है .
ऐसा क्यों होता है ?
यह फर्क है -
अपने - अपने व्यक्तित्व का .
अपनी - अपनी छवि का .
अपने जीवन दर्शन का .
अपने - अपने चरित्र का .
अपनी पारिवारिक और सामाजिक प्रष्ठभूमि का .
यह उपलब्धि है जीवनभर किये गए अपने व्यवहार की .
एक व्यक्ति को मूलत: ही अपराधी और गलत माना जाता है और कोई उसे निरपराध मान ही नहीं पाता है और दूसरे को मूलत: ही सच्चा और अच्छा व्यक्ति माना जाता है और कोई उसके गलत और अपराधी होने की कल्पना ही नहीं कर सकता है .
पाहिले व्यक्ति को अपराधी साबित करने के लिए आरोप लगाने बाले को कोई प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है , बस आरोप लगा देना ही पर्याप्त है , अब प्रयत्न तो उसे करते रहना है अपने आप को सही साबित करने का .
दुसरे व्यक्ति को अपने आप को सही साबित करने के लिए कुछ नहीं करना है , आरोप लगाने बाले को ही जुट जाना होगा उसे अपराधी साबित करने के सबूत जुटाने के प्रयासों में .
पहिला व्यक्ति सदा ही खतरे में है , उसे अपना जीवन कदम-कदम पर अपने आप को सही साबित करने के प्रयासों में और अपने द्वारा नहीं भी किये गए कुकृत्यों का दंड भोगते हुए ही बिताना होगा
और
दूसरा व्यक्ति अपनी स्वच्क्ष छवि की छत्रछाया में स्वयं ही , सदा ही सुरक्षित है , उसे संकट में डालने के लिए अन्यों को कष्ट उठाने होंगे .
यह दुनिया तो काजल की कोठरी है , यहाँ कालिख तो लगेगी ही , यहाँ दाग तो लगेंगे ही , आरोप तो लगेंगे ही , कोई भी इन्हें रोक नहीं सकता है .
हो सकता है की कभी तमाम परिस्थितिजन्य सबूत आपके विरुद्ध हों , आपके अपराधी होने की गवाही देते हों और आपके पास अपने आप को सही और निरपराध साबित करने के लिए कोई सबूत न हो , ऐसे में मात्र आपकी स्वच्छ छवि ही आपकी रक्षा कर सकती है ,
सब यही कहेंगे कि ठीक है , भले ही हालात कुछ और बयान करते हें पर वह ऐसा कर ही नहीं सकता है , वह ऐसा है ही नहीं .
निर्णय आपको करना है कि आपको जीवन भर अपने अकृत्य कथित दुष्क्रत्यों का दंड भोगते रहने के लिए अभिशप्त एक मजबूर और कलंकित जीवन जीने वाला व्यक्ति बनना है या एक शांत , गौरवमय जीवन जीने वाला व्यक्ति बनना है .
तदनुसार अपने चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण कीजिये .
यह आपके अपने हाथ में है , यह आपका अधिकार है और कर्तव्य भी .

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