Wednesday, July 10, 2013

हाँ ! यह अहंकार है , है !! और यही अहंकार ही धर्म है , धर्म अहंकार का ही नाम है . " मैं और सिर्फ मैं "

कोरी आदर्श की बातें धर्म नहीं हें , धर्म वास्तविकता है.
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

दुनिया में भी दो तरह की बातें होती हें , एक वे बातें जो कहने -सुनने में तो अच्छी लगती हें पर बस बातें होती हें " बातें हें बातों का क्या ? "
दूसरी तरह की बे बातें को किसी कार्य को सम्पन्न करने के लिए की जाती हें (discussion for execution ) . इस तरह की बातों में २+२ = ४ वाली भाषा में बातें होती हें , चिकनी - चुपड़ी , दिखावटी बातें नहीं .
अब दुनिया में कोई बहुत " मैं - मैं " करे तो उसे अहंकारी माना जाता है , और सुनने वाले को यह अच्छा भी नहीं लगता है , पर धर्म की तो शुरुवात ही "  मैं " से होती है और अंत भी " मैं " पर ही होता है . 
हाँ ! यह अहंकार है , है !! और यही अहंकार ही धर्म है , धर्म अहंकार का ही नाम है . " मैं और सिर्फ मैं "
धर्म का मार्ग संसार के मार्ग से अलग है , संसार से विपरीत है .
जो बातें संसार की चिकनी चुपड़ी भाषा में अच्छी लगती हें वे बातें धर्म के विपरीत बातें हें , वे बातें संसार बढाने वाली हें , वे कल्याणकारी बातें नहीं हें , वे पाखंड की बातें हें , सत्य और सच्चाई से परे .

No comments:

Post a Comment