- परमात्म नीति (9)
- संघर्ष यदि अपनों के साथ हो तो सिर्फ स्वयं के दम पर ही किया जा सकता है
- संघर्ष यदि अपनों के साथ हो तो सिर्फ अपने (स्वयं के) दम पर ही किया जा सकता है क्योंकि “अपने” तो तब विभक्त हो जाते हें, आखिर वे उसके (अपने विरोधी के) भी तो अपने ही हें.
अपनों के साथ संघर्ष में न्याय महत्वपूर्ण नहीं होता, महत्वपूर्ण यह नहीं होता है कि कौन सही है और कौन गलत. यहाँ महत्वपूर्ण होता है सामंजस्य, मेल, एकता और प्रेम बनाये रखना.
अपने प्रथक हो जाएँ यह रिस्क नहीं ली जा सकती है, क्योंकि अपने आखिर होते ही कितने हें.
परिजनों, सम्बन्धियों, मित्रों, सहयोगियों और शुभचिंतकों के लिए भी यह संकट और अग्निपरीक्षा की घड़ी होती है, वे किसका साथ दें और किसे छोड़ें. उनके लिए यह वह सजा है जो किसी अन्य के अपराध के लिए वे भुगतते हें.
मात्र यही वह दुर्लभ अवसर होता है जब अपनों के मुख से वस्तुनिष्ट (यथार्थपरक) विश्लेषण सुनने को मिलता है, अन्यथा तो वे सदैव ही रागरंजित राय ही प्रकट करते पाए जाते हें.
अपनों से समझौता और सहयोग कीजिये, संघर्ष नहीं.
यही उचित है और हितकारी भी.
उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.
घोषणा
यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.
यह क्रम जारी रहेगा.
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