Thursday, November 3, 2011

कहने को घर त्यागकर सन्यासी बन गए हें ,पर मन तो संसार में ही भ्रमता रहता है , न तो एक मिनिट का चैन है न रत्ती भर शुकून , यदि इसी का नाम सन्यास है तो संसार किसे कहेंगे ?

कहने को घर त्यागकर सन्यासी बन गए हें ,पर मन तो संसार में ही भ्रमता रहता है , न तो एक मिनिट का चैन है न रत्ती भर शुकून , यदि इसी का नाम सन्यास है तो संसार किसे कहेंगे , यह तो सन्यासी के वेश में लोगों की श्रद्धा लूटकर स्वार्थ सिद्धी करने का साधन दिखाई देता है , यदि पहिले ऐसा नहीं था और अब मन बदल गया है तो उतार फेंकिये भगवा और आ जाइए मैदान में , कौन रोकता है 


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राजनीति में बढ़ रही , अब सन्तन की भीड़ 
सत्ता अब तो ना रही , लीडर की जागीर
जटा कमंडल राज करेंगे , भली करें रघुवीर
जाने कहाँ ले जा रही,हम लोगों की तकदीर

जिन्हें जगत रुचता नहीं , क्यों राजनीति से प्यार
ये भी तो पथ भ्रष्ट हें , नहीं भ्रष्ट सिर्फ सरकार
अपना घर ना जिनसे संभला,वे क्या देश संभालेंगे
उन्होंने देश को लूटा है , अब ये देश लुटा देंगे

बाहर से घर त्याग दिया , मन रमता संसार में
संयोगों में सुख दुःख लगता , लाभ दिखे व्यापार में
व्यस्त ये दिनरात जगत में,हरीभजन को वक्त कहाँ
संत करेंगे राजनीति तो , हुए जगत से विरक्त कहाँ

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