Friday, November 11, 2011

वह कालिख मैंने धो डाली , जो छोड़ गए थे अंधियारे

वह व्यक्ति जिसने जीवन के विभिन्न रूप देख लिए हें स्थितिप्रग्य हो जाता है , अनुकूलताएँ उसे गाफिल नहीं करतीं हें और प्रतिकूलताएं पथ से च्युत नहीं करतीं हें , संसार में जीने का इससे बेहतर तरीका और कोई नहीं हो 
सकता है -




बीत गए वे दिन अंधियारे ,वक्त ने फिरसे करबट ली है 
कौन कहे यह फिर ना होगा,वक्त ने किससे यारी की है 
वह कालिख मैंने धो डाली , जो छोड़ गए थे अंधियारे 
फिर से अब रातें रोशन हें,फिर से दीप बने हें उजियारे
पर आज सजी इस दीवाली में , पहिले जैसी बात कहाँ
कडबे सच के दर्शन कर बैठा , कैसे पाऊं सुख चैन यहाँ

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