Tuesday, November 15, 2011

दौड़ भाग में सांझ हो गई ,


यहाँ जीवन की तुलना दिन से की गई है ,जिस तरह से हम किकर्त्व्यविमूद्ता की स्थिति में दिन खो देते हें उसी प्रकार जीवन भी चला जाता है बिना किस ई निष्कर्ष के -

दौड़ भाग में सांझ हो गई , 
दिन भर की रौनक कहाँ खो गई  ,
कुछ लौट गए  कुछ की तैयारी है ,
अब देर कहाँ  शीघ्र हमारी बारी है ,

कैसे मैं कुछ भी कर पाता ,
करना क्या समझ नहीं आता ,
इससे पहिले कि कुछ जान सकूं ,
दिन को बीत चुका पाता 

WILL CONTINUE -

No comments:

Post a Comment