यहाँ जीवन की तुलना दिन से की गई है ,जिस तरह से हम किकर्त्व्यविमूद्ता की स्थिति में दिन खो देते हें उसी प्रकार जीवन भी चला जाता है बिना किस ई निष्कर्ष के -
दिन भर की रौनक कहाँ खो गई ,
कुछ लौट गए कुछ की तैयारी है ,
अब देर कहाँ शीघ्र हमारी बारी है ,
कैसे मैं कुछ भी कर पाता ,
करना क्या समझ नहीं आता ,
इससे पहिले कि कुछ जान सकूं ,
दिन को बीत चुका पाता
WILL CONTINUE -
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