भूल निकलने में शर्म कैसी ?
भूल निकलने में शर्म कैसी ?
शर्म तो भूल बनी रहने में होती.
भूल निकली तो निकल ही तो गई , हम निर्भूल हो गए .
बशर्ते भूल निकलने पर हम उस भूल को निकाल फेंकें.
दुबारा बही भूल दोहराना अफ़सोस की बात है , और बार-बार दोहराते रहना शर्मनाक भी.
भूल होना अफ़सोस जनक है और भूल होते रहना शर्मनाक.
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल
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