Tuesday, November 22, 2011

सामान्यत:प्यार , मित्रता या श्रद्धा व्यक्तित्व के किसी एक हिस्से से हुआ करती है ,सम्पूर्ण व्यक्तित्व से नहीं किसी व्यक्ति से नहीं . यह सब तभी तक प्रगाढ़ रहते हें जब तक व्यक्तित्व के अन्य पहलू इसमें दखल नहीं देते हें .


हमें किसी व्यक्ति की हंसी अच्छी लगती है , किसी का हेल्पिंग नेचर अच्छा लगता है और हम उसे चाहने लगते हें ,पर जब निकटता बढ़ती है तब हमें उनकी दूरी बातें पसंद नहीं आतीं हें ,मानो जिसकी हंसी अच्छी है वह स्वभाव से कंजूस है और यह बात हमें पसंद नहीं है , बस यहीं से समस्या की शुरुवात होती है -

सामान्यत:प्यार , मित्रता या श्रद्धा व्यक्तित्व के किसी एक हिस्से से हुआ करती है ,सम्पूर्ण व्यक्तित्व से नहीं किसी व्यक्ति से नहीं . यह सब तभी तक प्रगाढ़ रहते हें जब तक व्यक्तित्व के अन्य पहलू इसमें दखल नहीं देते हें .

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