हमें किसी व्यक्ति की हंसी अच्छी लगती है , किसी का हेल्पिंग नेचर अच्छा लगता है और हम उसे चाहने लगते हें ,पर जब निकटता बढ़ती है तब हमें उनकी दूरी बातें पसंद नहीं आतीं हें ,मानो जिसकी हंसी अच्छी है वह स्वभाव से कंजूस है और यह बात हमें पसंद नहीं है , बस यहीं से समस्या की शुरुवात होती है -
मेरा चिंतन मात्र कहने-सुनने के लिए नहीं, आचरण के लिए, व्यवहार के लिए है और आदर्श भी. आदर्शों युक्त जीवन ही जीवन की सम्पूर्णता और सफलता है, स्व और पर के कल्याण के लिए. हाँ यह संभव है ! और मात्र यही करने योग्य है. यदि आदर्श को हम व्यवहार में नहीं लायेंगे तो हम आदर्श अवस्था प्राप्त कैसे करेंगे ? लोग गलत समझते हें जो कुछ कहा-सुना जाता है वह करना संभव नहीं, और जो किया जाता है वह कहने-सुनने लायक नहीं होता है. इस प्रकार लोग आधा-अधूरा जीवन जीते रहते हें, कभी भी पूर्णता को प्राप्त नहीं होते हें.
Tuesday, November 22, 2011
सामान्यत:प्यार , मित्रता या श्रद्धा व्यक्तित्व के किसी एक हिस्से से हुआ करती है ,सम्पूर्ण व्यक्तित्व से नहीं किसी व्यक्ति से नहीं . यह सब तभी तक प्रगाढ़ रहते हें जब तक व्यक्तित्व के अन्य पहलू इसमें दखल नहीं देते हें .
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