राग-द्वेष आत्मा में ही पैदा होते हें तो फिर आत्मा उनका कर्ता क्यों नहीं है ?
जिस प्रकार हमारे अन्य अंगों की ही तरह केंसर भी हमारे शरीर में ही पैदा होता है और हमारे ही भोजन से पोषण प्राप्त करता है पर उसे न तो कोई अपना कहता है और न अपना मानता है वल्कि हम जल्दी से जल्दी उससे पिंड छुड़ाने के फेर में ही रहते हें क्योंकि यह हमरे लिए हितकारी नहीं वल्कि घातक है , उसी प्रकार हालाँकि ये रग-द्वेष के भाव भी आत्मा में ही पैदा होते हें पर ये आत्मा के स्वभाव नहीं हें, आत्मा को दुःख देने बाले हें घातक हें इसलिए ये आत्मा के नहीं हें और आत्मा इनका करता भी नहीं है .
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल
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