--------पर अपने लिए समय निकाल !आत्मा के लिए समय निकाल !इसी में तेरा कल्याण है .
यूं तो इस आदमी को क्या नहीं चाहिए ?
पर जब बात लिमिटेड बजट की आती है तो कटौतियों का सिलसिला शुरू हो जाता है .
और जानते हें बात कहाँ तक पहुँचती है ?
हो सकता है दिन में दो बार मात्र २-२ सूखी रोटियों तक भी जा पहुंचे .
और इसके साथ भी आदमी जी तो सकता ही है न ?
जब पैसे के लिए इस तरह की कटौती की जा सकती है तो आत्मा के लिए क्यों नहीं ?
आत्मा के लिए क्या नहीं किया जा सकता है ?
यदि तेरे पास पर्याप्त समय है तो तू सब कुछ कर न ?
आखिर केवली भगवान लोकालोक को जानते ही हें न ?
पर यदि समय न हो तो फिर कटौती का सिलसिला प्रारंभ करना ही होगा.
जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक और कुछ भी नहीं सिवाय भोजन और निवृत्ति आदि क्रियाओं के ( जिनके लिए प्रथक समय चाहिए)
और कटौती का सिलसिला यहाँ तक भी पहुँचाया जा सकता है .
कुछ भी कर ,
पर अपने लिए समय निकाल !
आत्मा के लिए समय निकाल !
इसी में तेरा कल्याण है .
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल
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