" संसार का बढ़ना अरे ,नर देह की यह हार है "
अरे ! यह कैसी विपरीतता है तेरे व्यवहार में ? बातें करता है मोक्ष की और दिन - रात संसार बढ़ाने के उपक्रमों में ही तल्लीन रहता है .
अरे ! " संसार का बढ़ना अरे ,नर देह की यह हार है "
और यह हार तुझे स्वीकार है क्या ?
यदि तू मोक्ष ही चाहता है तो मोक्ष का ही पुरुषार्थ क्यों नहीं करता है .
यदि तू मोक्ष का पुरुषार्थ आज नहीं करेगा तो कब करेगा ?
यह मानव भव तो भव का अभाव करने के लिए मिला है , यदि तू इस भव में भी संसार का ही विस्तार करेगा तो मोक्ष का पुरुषार्थ कब करेगा ?
मानव जीवन अति दुर्लभ है , एक बार यह अवसर हाथ से गया तो नामालूम कब फिर वापिस मिलेगा .
यूं तो तू निरंतर ही क्षुद्र स्वार्थसिद्धी में ही व्यस्त रहता है और जब कभी कुछ काल के लिए कुछ कोमल भावनाएं जन्म लेतीं हें तो धर्म के नाम पर कथित परोपकार के काम में लग जाता है .
क्या तू नहीं जानता क़ि तेरा स्वार्थ तो पाप बंध का कारण होने से संसार को बढ़ाने बाला है ही पर परोपकार भी कोई मोक्ष का मार्ग नहीं है ,वह भी पुन्य बंध का कारण होने से संसार में बांधने बाला ही है .
और फिर तू जिन क्रियाओं को परोपकार मनता है वह भी उत्तम परोपकार कहाँ है ? सच्चा उपकार तो तीर्थंकर -गणधर देव करते हें , मोक्ष मार्ग का उपदेश देकर .
तू भूमिका की कमजोरी का हवाला देकर कब तक अपने प्रमाद का पोषण करेगा .
अरे ! मोक्ष का उग्र पुरुषार्थ तो संसार की कमजोर भूमिका में ही होता है.
घोर घातक रोग से मुक्ती का उपाय उसी घोर रोग की अवस्था में ही किया जाता है , स्वस्थ्य व्यक्ति को तो उपचार की आवश्यक्ता ही क्या है ?
तू बातें तो बनाता है क़ि भोग बंध के कारण हें पर दिन - रात भोगों में ही तो रत रहता है .
अरे भाई ! यह सही है क़ि मधुमेह ( diavities ) के रोगी को ही मिठाई खाने का तीव्र विकल्प आता है ,पर इसलिए मिठाई खाने से रोग ठीक तो नहीं हो जायेगा ना ? इससे तो बीमारी की भयंकरता बढ़ेगी ही न ?
क्या यह बहाना बनाकर उस मधुमेह के रोगी को मिठाई खाने की इजाजत दी जा सकती है ?
इसी प्रकार इस संसार अवस्था में भोगों का भाव बना रहना स्वाभाविक है पर इससे किसी को मात्र भोगों में ही लिप्त रहने इजाजत तो नहीं दी जा सकती है न ?
ऐसा करने से तो संसार का ही विस्तार होगा .
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल
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