भगवान के दर्शन का फल भगवान बनना है,इससे कम मुझे कुछ भी नहीं चाहिए
नित देव दर्शन चाहिए , निज आत्म दर्शन के लिए
जिस तरह दर्पण देखता हूँ ,खुद को निरखने के लिए
जिनदेव का जिनबिम्ब प्रभु,तेरा स्वयं प्रतिबिम्ब है
निज रूप तकने के लिए , दर्पण समां अबलंब है
दर्पण नहीं इस लोक में ,एक द्रश्य सुन्दरतम अहो
निरखा नहीं जो आपको ,क्या मूल्य है इसका कहो
भगवान की प्रतिमा अरे ,निज रूप का आकार है
इससे अलग कुछ ना अरे, इसका सुफल स्वीकार है
No comments:
Post a Comment