Tuesday, December 20, 2011

उठो दौड़ो लपकलो , बो तुमको बुलाती जिदगी


ताउम्र में खोजा किया 
ना हाथ आती जिन्दगी 

प्रतिदिन नए कुछ रूप अपने 
हमको दिखाती जिदगी 

नया नया कुछ सीखते , मैंने बिताये बर्ष ये 
फिरभी नया प्रत्येक दिन , कुछ तो सिखाती जिन्दगी 

ना सुकून मिलता एक पल 
प्रतिपल सताती जिन्दगी 

कब धूप  कब छांह होगी 
किसको बताती जिदगी 

गुना भाग वा बाद बाकी 
सबको सिखाती जिदगी 

अवसर तो ये दिल खोलकर 
कितने लुटाती जिदगी 

जिदगी के गीत सदा ही 
गुनगुनाती जिदगी 

उठो दौड़ो लपकलो
बो तुमको बुलाती जिदगी

दूर रहकर बीत जाती 
तब हाथ आती जिदगी 

हमको व्यथित यूं देखकर 
क्यों मुस्कराती जिदगी 

जिस राह पर ये दौडती 
किसको है भाती जिन्दगी 

जो है जैसी बीत जाती 
फिर याद आती जिन्दगी 

जिदगी बनाने के फेर में , हमने बितादी जिदगी 
कुछ ना हुआ हमसे मगर , हमको बना गई जिदगी 

मौत का मुंह देखकर , प्रत्येक पल मरता रहा 
मैंने तो उसके नाम ही , अपनी बितादी जिदगी 

चुनौतियां स्वीकार करते , हम सफलता से जिए 
पर एक दिन तो मौत से , ये हार जाती जिन्दगी 

कांच की किरचों सी एक दिन 
बिखर जाती जिन्दगी 


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