जीवन का सत्य
अब तक
मैं कितना भी दौड़ा
लम्बा सफ़र हमेशा ही बाकी रहा है
घड़ी हमेशा ही बहुत तेज दौड़ी
और मेरा लक्ष्य पिछड़ता ही रहा है
इसका एक कारण और था
वक्त जितना भी कटता जाता है
उतना घटता ही जाता है
और काम जितना पटता जाता है
उतना ही बढ़ता भी जाता है
इसलिए
काम और वक्त के बीच का फासला
पहिले बहुत कम रहता था
अब यह निरंतर बढ़ता ही जाता है
कोई कितना भी जिए
जीवन छोटा ही नजर आता है
एक दिन
जब मैं लेखा जोखा करने लगा
मैंने पाया
जिन्दगी ने मुझे ठगा
जीवन भर मैंने
बस कमाया , खाया और पीया
इसके लिए ही मरा , इसके लिए ही जिया
इसके अलावा मैंने किया ही क्या है
जीवन ने मुझे दिया ही क्या है
मैं सोचा करता हूँ
क़ि आखिर जीवन क्या है
आदमी एक दिन जन्म लेता है
और एक दिन मर जाता है
इन दोनों घटनाओं के बीच
वह पीता है , खाता है
कभी सोता है , कभी जाग जाता है
दिन-रात , मर-खपकर कमाता है
और बस पैसों के आधार पर
छोटा या बड़ा कहलाता है
हमने जीवन लिए
न तो कोई लक्ष्य निर्धारित किये
और न हासिल
इसीलिये जीवन बना रहा
वेकाम और नाकाविल
यूं भी मैंने
जब जब , जो जो करने की ठानी
नियति ने मेरी एक न मानी
जब जब हमने
जीवन को एक दिशा देने की कोशिश की
जीवन ने कोई और ही करवट ली
मैंने नियति को नकारना चाहा
और समय को भी पछाड़ना चाहा
पर कुछ काम न आया
करना बहुत कुछ था पर कर कुछ भी न पाया
आज मेरा जीवन
घड़ी की सुई के सहारे चलता है
क्योंकि मैं जान गया हूँ क़ि
जो होना होता है वही होता है
आदमी क्या करता है
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