आप यह जानकर हैरान रह जायेंगे क़ि हमारे व्यक्तित्व में कितना विरोधाभास है .
जिस मिनिट हम गहरे संकट में होते हें और चाहते हें क़ि सामने वाले ह्रदय में परोपकार और सह्रदयता की भावना पैदा हो और वह हमारी सहायता करे , ठीक उसी पल हम स्वयं अत्यंत निष्ठुर बने रहते हें और किसी अन्य याचक को कठोरता के साथ झिड़क देते हें .
जिस पल हम भयंकर भूंख से त्रस्त होते हें और सामने वाले से उदारता की अपेक्षा करते हुए चाहते हें क़ि वह सम्मान पूर्वक हमें हमारा रुचिकर भोजन करवाए उसी पल हम स्वयं इतने निर्दय होते हें क़ि अपनी एक पल की भूंख मिटाने के लिए किसी की जान लेने से भी नहीं हिचकते हें .
जब हमें धन की अत्यधिक जरूरत होती है उसी पल हम दूसरे को लूट लेते हें यह जाने और सोचे बगैर क़ि उसे उस धन की कैसी और कितनी अधिक जरूरत होगी .
समय समय पर हम अन्य लोगों से जिस प्रकार के व्यवहार की उम्मीद करते हें ,हम स्वयं अपने आपको हमेशा के लिए वैसा ही क्यों नहीं बना लेते ?
यदि ऐसा हो सके तो यह दुनिया रहने के लिए एक आदर्श स्थान न बन जाए ?
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