इतना छोटा तो जीवन है और हम इसे इन्तजार में ही गंबा देते हें -
जगत में अनुकूलताएँ कम और व्यवधान अनन्त हें , बहुत हुआ , बस ! अब मैं सही समय का और इन्तजार नहीं कर सकता .
कभी बहुत सर्दी और कभी बहुत गर्मी होती है , कभी बहुत थकान और कभी तबियत नरम .
कभी अपोइंत्मेंट होता है तो कभी मेहमान आ जाते हें .
यदि सब कुछ ठीक ठाक हो तो मुआ यह मूढ़ जबाब दे जाता है .
कुछ भी होता रहे पर जीवन तो चलता ही रहता है , वह रुकता नहीं है , और अपने समय पर पूर्ण भी हो ही जाता है
बस हम ही आधे अधूरे रह जाते हें .
बस , इसलिए अब इन्तजार उचित नहीं .
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